रामरक्षास्तोत्रम्

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🕉 Sanatan hindu dharma


                रामरक्षास्तोत्रम्
               

               


(Note

श्रीमान् अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः श्रीसीतारामचन्द्रो देवता अनुष्टुप् छन्दः सीता शक्तिः हनुमान् कीलकं श्रीरामचन्द्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः ।

विनियोगः

इस रामरक्षास्तोत्र-मन्त्रके बुधकौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचन्द्र देवता हैं, अनुष्टुप् छन्द है, सीता शक्ति हैं, श्रीमान् हनुमानजी कीलक हैं तथाश्रीरामचन्द्रजीकी प्रसन्नताके लिये रामरक्षास्तोत्र के उपमें विनियोग किया जाता है ।

ध्यानम्

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्। वामाङ्कारूढ सीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचन्द्रम् ॥ जो धनुष-बाण धारण किये हुए हैं, बद्ध पद्मासनसे

रामरक्षास्तोत्रम्

विराजमान हैं, पीताम्बर पहने हुए हैं, जिनके प्रसन्न नयन नूतन कमलदलसे स्पर्धा करते तथा वामभागमें विराजमान श्रीसीताजीके मुखकमलसे मिले हुए हैं, उन आजानुबाहु, मेघश्याम, नाना प्रकारके अलंकारोंसे विभूषित तथा विशाल जटाजूटधारी श्रीरामचन्द्रजीका ध्यान करे।

स्तोत्रम्

चरितंरघुनाथस्यशतकोटिप्रविस्तरम् ।एकैकमक्षरंपुंसांमहापातकनाशनम् ॥ १ ॥
रामरक्षास्तोत्रम्

श्रीरघुनाथजीका चरित्र सौ करोड़ विस्तारवाला है और उसका एक-एक अक्षर भी मनुष्योंके महान् पापको नष्ट करनेवाला है ॥ १ ॥

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणोपेतंजटामुकुटमण्डितम् ॥ २ ॥

सासितूणधनुर्बाणपाणिंनक्तंचरान्तकम् । जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥ ३ ॥
स्वलीलयारामरक्षां पठेत्प्राज्ञःपापघ्नीं सर्वकामदाम् । शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥ ४ ॥

जो नीलकमलके समान श्यामवर्ण, कमल-नयनजटाओंके मुकुटसे सुशोभित, हाथोंमें खड्ग, तूणीर, धनुष और बाण धारण करनेवाले, राक्षसोंके संहारकारी तथा संसारकी रक्षाके लिये अपनी लीलासे ही अवतीर्ण हुए हैं, उन अजन्मा और सर्वव्यापक भगवान् रामका जानकी और लक्ष्मणजीके सहित स्मरण कर प्राज्ञ पुरुष इस सर्वकामप्रदा और पापविनाशिनी रामरक्षाका पाठ करे । मेरी सिरकी राघव और ललाटकी दशरथात्मज रक्षा करें ॥ २-४ ॥


कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती । घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥ ५ ॥ कौसल्यानन्दन नेत्रोंकी रक्षा करें, विश्वामित्रप्रिय कानोंको सुरक्षित रखें तथा यज्ञरक्षक प्राणकी और सौमित्रिवत्सल मुखकी रक्षा करें ॥ ५ ॥

जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः । स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥ ६ ॥ मेरी जिह्वाकी विद्यानिधि, कण्टकी भरतवन्दित, कंधोंकी


दिव्यायुध और भुजाओंकी भग्नेशकार्मुक (महादेवजीका धनुष तोड़नेवाले) रक्षा करें ॥ ६ ॥ करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित् । मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥ ७ ॥ हाथोंकी सीतापति, हृदयकी जामदग्न्यजित् (परशुरामजीको जीतनेवाले), मध्यभागकी खरध्वंसी (खर नामके राक्षसका नाश करनेवाले) और नाभिकी जाम्बवदाश्रय (जाम्बवान्‌के आश्रयस्वरूप) रक्षा करें ॥ ७ ॥

 सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः । रघूत्तमः पातु रक्षः कुलविनाशकृत् ॥ ८ ॥ कमरकी सुग्रीवेश (सुग्रीवके स्वामी), सक्थियोंकी और ऊरुओंकी राक्षसकुल- विनाशक रघुश्रेष्ठ रक्षा करें ॥ ८ ॥

जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तकः। पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ॥ ९ ॥ जानुओंकी सेतुकृत्, जङ्घाओंकी दशमुखान्तक (रावणको

मारनेवाले), चरणोंकी विभीषणश्रीद (विभीषणको ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले) और सम्पूर्ण शरीरकी श्रीराम रक्षा करें ॥। ९ ॥

एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् । स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥ १० ॥ जो पुण्यवान् पुरुष रामबलसे सम्पन्न इस रक्षाका पाठ करता है, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान्, विजयी और वनयसम्पन्न हो जाता है ॥ १० ॥



पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥ ११ ॥ 

जो जीव पाताल, पृथ्वी अथवा आकाशमें विचरते हैं। और जो छद्मवेशसे घूमते रहते हैं, वे रामनामोंसे सुरक्षित पुरुषको देख भी नहीं सकते ॥ ११ ॥

रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन्। नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥ १२ ॥

 'राम', 'रामभद्र', 'रामचन्द्र'- इन नामोंका स्मरणकरनेसे मनुष्य पापोंसे लिप्त नहीं होता तथा भोग और मोक्ष प्राप्त कर लेता है ॥ १२ ॥ 
जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥ १३ ॥ 


जो पुरुष जगत्को विजय करनेवाले एकमात्र मन्त्र रामनामसे सुरक्षित इस स्तोत्रको कण्ठमें धारण करता है। (अर्थात् इसे कण्ठस्थ कर लेता है), सम्पूर्ण सिद्धियाँ उसके हस्तगत हो जाती हैं ॥ १३ ॥



वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् । अव्याहताज्ञःसर्वत्रलभते जयमङ्गलम् ॥ १४ ॥ जो मनुष्य वज्रपञ्जर नामक इस रामकवचका स्मरण करता है, उसकी आज्ञाका कहीं उल्लङ्घन नहीं होता और उसे सर्वत्र जय और मङ्गलकी प्राप्ति होती है ॥ १४ ॥

आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमांहरः ।
तथा लिखितवान्प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥ १५ ॥


सर्वदा उद्यत, कवचधारी, हाथमें खङ्ग लिये, धनुष-बाण धारण किये तथा युवा अवस्थावाले भगवान् राम लक्ष्मणजीसहित आगे-आगे चलकर हमारे मनोरथोंकी रक्षा करें ॥ २१ ॥

रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली । काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥ २२ ॥

वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥ २३ ॥

इत्येतानि जपत्रित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः । अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥२४॥ (भगवान्का कथन है कि ) राम भर लक्ष्मणानुचर, बली, काकुत्स्थ, पुरुष, पूर्ण, कौशल्येग रघूत्तम, वेदान्तवेद्य, यज्ञेश, पुराणपुरुषोत्तम, जानकीवल्लभ, श्रीमान् और अप्रमेयपराक्रम- इद नामका नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करनेसे मेरा भक्त अश्वमेधयज्ञसे भी अधिक फल प्राप्त करता है-इसमें कोई सन्देह नहीं है। २२- २४

रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नराः ॥ २५ ॥ 

जो लोग दूर्वादलके समान श्यामवर्ण, कमलनयन पीताम्बरधारी भगवान् रामका इन दिव्य नामोंसे स्तवन करते हैं, वे संसारचक्रमें नहीं पड़ते ॥ २५ ॥

रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरें काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ।

राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्ति वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥

 लक्ष्मणजी पूर्वज रघुकुलमें श्रेष्ठ, सीताजीक स्वामी, अतिसुन्दर, ककुत्स्थकुलनन्दन, करुणासागर, गुणनिधान, ब्राह्मणभक्त, परम धार्मिक, राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथपुत्र, श्याम और शान्तमूर्ति, सम्पूर्ण लोकोंमें सुन्दर, रघुकुलतिलक, राघव और रावणारि भगवान् रामकी में वन्दना करता हूँ ॥ २६ ॥

रामायरामभद्राय रामचन्द्रायराम, रामभद्र, रामचन्द्र, वैधसे। रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥ २७ ॥  

राम,रामभद्र, रामचन्द्र विधातृस्वरूप, रघुनाथ, प्रभु सीतापतिको नमस्कार है ।। २७ ।।


श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम श्रीराम राम भरताग्रज राम राम । श्रीराम राम रणकर्कश राम रामश्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥ २८ ॥

 हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरताग्रज भगवान् राम! हे रणधीर प्रभु राम ! आप मेरे आश्रय होइये ॥ २८ ॥


श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामिश्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥ २९ ॥ 

मैं श्रीरामचन्द्रके चरणोंका मनसे स्मरण करता है, श्रीरामचन्द्रके चरणोंका वाणीसे कीर्तन करता हूँ, श्रीरामचन्द्रके चरणोंको सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ तथा श्रीरामचन्द्रके चरणोंकी शरण लेता हूँ ॥ २९ ॥

रामरक्षास्तोत्रम्माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः
स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः । सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु-नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥ ३० ॥ 

राम मेरी माता हैं, राम मेरे पिता हैं, राम स्वामी हैं और राम ही मेरे सखा हैं । दयामय रामचन्द्र ही मेरे सर्वस्व हैं, उनके सिवा और किसीको मैं नहीं जानता- बिलकुल नहीं जानता ॥ ३० ॥

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम् ॥ ३९ जिनको दायें और लक्ष्मणजी, बायीं ओर जानकी और सामने हनुमानजी विराजमान है उन रघुना वन्दना करता हूँ ॥ ३१ ॥

लोकाभिरामं रणरङ्गधीरंराजीवनेत्रंरघुवंशनाथम् ।कारुण्यरूपंकरुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रशरणंप्रपद्ये ॥ ३२ ॥


जो सम्पूर्ण लोकोंमें सुन्दर, रणक्रीडामें धीर, कमलनयन, रघुवंशनायक, करुणामूर्ति और करुणाके भण्डार हैं, उन श्रीरामचन्द्रजीकी मैं शरण लेता हूँ ॥ ३२ ॥

मनोजवं मारुततुल्यवेगंजितेन्द्रियंबुद्धिमतां वरिष्ठम् ।वातात्मजंवानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतंशरणं प्रपद्ये ॥ ३३

जिनकी मनके समान गति और वायुके सम है, जो परम जितेन्द्रिय और बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, उन पवन नंदन वानराग्रगण्य श्रीरामदूतकी में शरण लेता हूँ ॥ ३३ ॥

 कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् । आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥ ३४ ॥ 

कवितामयी डालीपर बैठकर मधुर अक्षरोंवाले राम-राम इस मधुर नामको कूजते हुए वाल्मीकिरूप कोकिलकी में वन्दना करता हूँ ॥ ३४ ॥

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् । लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥ ३५ ॥

आपत्तियोंको हरनेवाले तथा सब प्रकारको सम्पत्ति प्रदान करनेवाले लोकाभिराम भगवान् रामको मैं बारंबार नमस्कार करता हूँ ॥ ३५ ॥

 भर्जनं भवबीजानामर्जनंसुखसम्पदाम्।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥ ३६ ॥ '

राम-राम' ऐसा घोष करना सम्पूर्ण संसारबीजोंको भून डालनेवाला, समस्त सुख-सम्पत्तिकी प्राप्ति करानेवाला तथा यमदूतोंको भयभीत करनेवाला है ॥ ३६ ॥



रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः। रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं ।रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ।। ३७ ।। 

राजाओं में श्रेष्ठ श्रीरामजी सदा विजयको प्राप्त होते हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान् रामका भजन करता हूँ । जिन रामचन्द्रजीने सम्पूर्ण राक्षससेनाका ध्वंस कर दिया था, मैं । उनको प्रणाम करता हूँ । रामसे बड़ा और कोई आश्रयनहीं है । मैं उन रामचन्द्रजीका दास हूँ। मेरा चित्त सदा राममें ही लीन रहे; हे राम! आप मेरा उद्धार कीजिये ॥ ३७ ॥ 

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥ ३८ ॥ (श्रीमहादेवजी पार्वतीजीसे कहते हैं-) हे सुमुखि ! रामनाम विष्णुसहस्रनामके तुल्य है । मैं सर्वदा 'राम, राम, राम' इस प्रकार मनोरम रामनाममें ही रमण करता हूँ ॥ ३८ ॥


 इति श्रीबुधकौशिकमुनिविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं सम्पूर्णम्।


हर हर महादेव मित्र 
भूपाल मिश्र 

Bhupalmishra108.blogspot.com 

Bhupalmishra35620@gmail.com 








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