वेद
हर हर महादेव मित्र
आज हम वेद पर लेखनी उठाने की धृष्टता की है ।क्षमा करे ,विषय जितना विशाल है ,मै उतना ही अल्पज्ञ। क्या करे ,फिर भी वेद भगवान ,गुरूजनो के चरणरज का आश्रय लेकर यथामति कुछ लिख देता हूं ।
मित्र, वेद चार भाग मे है । वेद मे एक लाख श्लोक है ।जिनके द्वारा भगवत प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है ।एक लाख श्लोक को तीन भाग किया गया है ।प्रथम भाग मे 80000 श्लोक है ।जो कर्म काण्ड हो ।16000 श्लोक है ज्ञान काण्ड है ।और शेष 4000 श्लोक उपासना काण्ड है ।
अर्थात, वेद ईश्वर प्राप्ति का साधन है ।इनका आश्रय लेकर हम संसार सागर से मुक्त होते है ।
इश्वर प्राप्ति के प्रथम पथ है कर्म काण्ड ।जिसमे 80000 श्लोक खर्च किया गया है ।अर्थात मनुष्य जीवन मे कर्म की प्रधानता है । कर्म शास्त्रोक्त विधि से किया गया कर्म ही इश्वर प्रगति का साधन हो सकता है ।अन्यथा अच्छे से अच्छा कर्म भी कुकर्म हो सकता है ।जो बंधन का कारण हो मनमाने कार्य धर्म नही हो सकता ।और न ही उससे कोई कल्याण होने वाला है ।
कर्म के वारे मे गीता मे भगवान श्रीकृष्ण कहते है जितने देर मे आंख का पलक गिरता है ।उतने देर भी मनुष्य बिना कर्म के नही रह सकता है ।अर्थात हमलोगो को कभी फुर्सत नही है ।कोई छोटी नही है ।
एसा कर्म जो जाने अनजाने मे करना ही पङता है ।तो उसे जानना चाहिए की नही ? अवश्य ही जानना चाहिए। वेद विहित कर्म से ही कल्याण है ।
मनुष्य सिर्फ और सिर्फ कर्म करने लिए ही स्वतंत्र है ।भला बूरा जो मर्जी करे ।फल तो विधाता के हाथ मे ही है ।फल मे स्वतंत्र नही है ।
मेरा मानना है कि धर्म का रक्षा करना ही कर्म है ।
अब। हमलोग दुसरे भाग यानि ज्ञान काण्ड 16000 श्लोक को समझने की कोशिश करे । वेद का दुसरा मार्ग है ज्ञान काण्ड ।हम ज्ञान के द्वारा भगवान को प्राप्त।क करे ।आत्म ज्ञान, ईश्वर का ज्ञान के द्वारा प्राप्त करने का उपाय । ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति कैसे हो ?
और जौ अंतिम उपाय है ।उपासना काण्ड 4000 श्लोक मे उपासना की विधि को बताया गया हो ।उपासना के मार्ग से भगवत प्राप्ति कैसे हो ।जिसमे, योग मंत्र जप आदि है । यहां कर्म और ज्ञान की प्रधानता गौण । है ।भक्ति के द्वारा ही भगवत प्राप्ति।
जप मात्र जप गुरू प्रदत्त मंत्र जप ।यज्ञानाम जप यज्ञस्मि।
समस्त मनोकामना की सिद्धि के लिए जप ।कलिकाल मे मनुष्य मात्र के लिए भगवन्नाम जप एक मात्र सर्वोत्कृष्ट, सर्वमान्य ऊपाय है ।
क्रमशः