अनाथक बन्धु , सिन्दूरसे शोभायमान दोनों गण्डस्थलवाले , प्रबल विघ्नका नाश करने में समर्थ एवं इन्द्रादि देवोंसे नमस्कृत श्रीगणेशका मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ । '
' संसारके भयरूपी महान् दुःखको नष्ट करनेवाले , ग्राहसे गजराजको मुक्त करनेवाले , चक्रधारी एवं नवीन कमलदलके समान नेत्रवाले , पद्मनाभ गरुडवाहन भगवान् श्रीनारायणका में प्रातःकाल स्मरण करता हूँ । '
' संसारके भयको नष्ट करनेवाले , देवेश , गङ्गाधर , वृषभवाहन , पार्वतीपति , हाथमें खट्वाङ्ग एवं त्रिशूल लिये और संसाररूपी रोगका नाश करनेके लिये अद्वितीय औषध - स्वरूप , अभय एवं वरद मुद्रायुक्त हस्तवाले भगवान् शिवका मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ । '
' शरत्कालीन चन्द्रमाके समान उज्ज्वल आभावाली , उत्तम रत्नोंसे जटित मकरकुण्डलों तथा हारोंसे सुशोभित , दिव्यायुधोंसे दीप्त सुन्दर नीले हजारों हाथोंवाली , लाल कमलकी आभायुक्त चरणोंवाली भगवती दुर्गा देवीका मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ ।
सूर्यस्मरण
प्रातः स्मरामि खलु तत्सवितुर्वरेण्यं रूपं हि मण्डलमृचोऽथ तनुर्यजूंषि । सामानि यस्य किरणाः प्रभवादिहेतुं ब्रह्माहरात्मकमलक्ष्यमचिन्त्यरूपम् ' सूर्यका वह प्रशस्त रूप जिसका मण्डल ऋग्वेद , कलेवर यजुर्वेद तथा किरणें सामवेद हैं । जो सृष्टि आदिके कारण हैं , ब्रह्मा और शिवके स्मरण करता हूँ । स्वरूप हैं तथा जिनका रूप अचिन्त्य और अलक्ष्य है , प्रातःकाल मैं उनका त्रिदेवोंके साथ स्मरण करता हुं ।
इस प्रकार उपर्युक्त इन प्रातःस्मरणीय परम पवित्र श्लोकोंका जो मनुष्य भक्तिपूर्वक प्रातःकाल पाठ करता है , स्मरण करता है अथवा सुनता है , भगवद्दयासे उसके दुःस्वप्नका नाश हो जाता है और उसका प्रभात मङ्गलमय होता है । '
पुण्यश्लोकोंका स्मरण पुण्यश्लोको नलो राजा पुण्यश्लोको जनार्दनः । पुण्यश्लोका च वैदेही पुण्यश्लोको युधिष्ठिरः ॥
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् । उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम् ॥ केदार हिमवत्पृष्ठे डाकिन्यां भीमशङ्करम् । वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे ॥ वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूक वने सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मशं च शिवालये।। द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय य:पठेत्। सर्व पाप विनि र मुक्तः सर्व सिद्धि फलो भवेत । ।
निक कृत्य - सूची - निर्धारण- इसी समय दिन - रातके कार्योंकी सूची तैयार कर लें । आज धर्मके कौन - कौनसे कार्य करने हैं ? धनके लिये क्या करना है ? शरीरमें कोई कष्ट तो नहीं है ? यदि है तो उसके कारण क्या हैं और उनका प्रतीकार क्या है ? १ ब्राहो मुहूर्ते बुध्येत धर्मार्थी खानुचिन्तयेत् । कायक्लेशांश्च तन्मूलान् वेदतरवार्थमेव च ॥ ( मनु ४१ ९ २ )