श्री लक्ष्मी जी 1
श्री1लक्ष्मीजी , गरुड़जी , सुनन्द आदि सोलह पार्षद , हनुमान्जी , जाम्बवान्जी , सुग्रीवजी , विभीष श्रीशबरीजी , खगपति जटायुजी , ध्रुवजी , उद्धवजी , अम्बरीषजी , विदुरजी , अक्रूरजी , सुदामाजी , चन्द्रह चित्रकेतुजी , ग्राह , गजेन्द्र , पाण्डव ( युधिष्ठिर , भीमसेन , अर्जुन , नकुल , सहदेव ) , श्रीमैत्रेयजी , कुन्तीज द्रौपदीजी , जिनकी लज्जा दुःशासनके वस्त्र खींचते समय भगवान्ने रखी । इन सबकी प्रभुके पादपद्मों में है । इन हरिके प्यारे भक्तोंकी प्रार्थना करता हूँ । इनके चरणोंकी रजको प्राप्त करनेकी आशा मनमें की है ॥ ९ ॥ श्रीप्रियादासजीने भगवान्के प्रिय भक्तोंकी महिमा निम्न कवित्तमें वर्णित की है हरि के जे वल्लभ हैं दुर्लभ भुवन माँझ तिनहीं की पदरेणु आसा जिय करी है । योगी यती तपी तासों मेरो कछु काज नाहिं प्रीति परतीत रीति मेरी मति हरी है ॥ कमला गरुड़ जाम्बवान सुग्रीव आदि सबै स्वाद रूप कथा पोथिन में धरी है । प्रभुसों सचाई जग कीरति चलाई अति मेरे मन भाई सुखदाई रस भरी है ॥ २६ ॥ जो भगवान्के प्यारे भक्त हैं , वे चौदहों भुवनोंमें दुर्लभ हैं , मैंने उन्हींकी चरणरेणुको प्राप्त करने आशा की है । भक्तिहीन जो कोरे योगी , संन्यासी और तपस्वी हैं , उन लोगोंसे मेरा कुछ भी प्रयोजन न है । भक्तोंकी प्रीति , विश्वास और उपासनाकी रीतिने मेरी बुद्धिको अपनी ओर खींच लिया है । लक्ष्मी , गरु जाम्बवान् और सुग्रीव आदिकी अति मधुर कथाएँ पुराण आदि ग्रन्थोंमें लिखी हैं । जिन भक्तोंने प्रभुसे निष्क सच्चा प्रेम किया तथा संसारमें अपनी और भगवान्की कीर्ति फैलायी , उनकी वह रसमयी मधुर गाथा में मनको बहुत अच्छी लगी ; क्योंकि वह सुनने - सुनानेमें हृदयको सुख देनेवाली है ॥२६ ॥
यहाँ संक्षेपमें भगवान्के प्रिय भक्तोंकी कथाएँ दी जा रही हैं श्रीकमला ( श्रीलक्ष्मीजी ) भगवती लक्ष्मीजी विष्णुवल्लभा हैं , वे भगवान् विष्णुसे अभिन्न हैं । उनके विषयमें बताते हुए पराशरज श्रीमैत्रेयजीसे कहते हैं- हे द्विजश्रेष्ठ ! भगवान्का कभी संग न छोड़नेवाली जगज्जननी लक्ष्मीजी नित्य है और जिस प्रकार श्रीविष्णुभगवान् सर्वव्यापक हैं , वैसे ही ये भी हैं । विष्णु अर्थ हैं तो लक्ष्मीजी वाणी हैं ; हरि न्याय हैं तो ये नीति हैं ; भगवान् विष्णु बोध हैं तो ये बुद्धि हैं ; तथा वे धर्म हैं तो लक्ष्मीजी सत्क्रिया है ।
मैत्रेय ! भगवान् जगत्के स्रष्टा हैं तो लक्ष्मीजी सृष्टि हैं । श्रीहरि भूधर ( पर्वत अथवा राजा ) है तो लक्ष्मीजी भूमि है , भगवान् सन्तोष हैं तो लक्ष्मीजी नित्य - तुष्टि हैं । भगवान् काम है तो लक्ष्मीजी इच्छा है व यज्ञ हैं तो ये दक्षिणा हैं ; श्रीजनार्दन पुरोडाश हैं तो देवी लक्ष्मीजी आज्याहुति ( घृतकी आहुति ) हैं । मुने ! मधुसूदन यजमानगृह हैं तो लक्ष्मी पत्नीशाला हैं श्रीहरि यूप ( यज्ञस्तम्भ ) हैं तो लक्ष्मीजी चिति ( इष्टका - चयन ) हैं ; भगवान् कुशा हैं तो लक्ष्मीजी समिधा हैं । भगवान् सामस्वरूप हैं तो श्रीकमलादेवी उद्गीति हैं ; जगत्पति भगवान् वासुदेव हुताशन हैं तो लक्ष्मीजी ( उनकी पत्नी ) स्वाहा हैं । द्विजोत्तम ! भगवान् विष्णु शंकर हैं तो श्रीलक्ष्मीजी गौरी हैं ; इसी प्रकार हे मैत्रेय । श्रीकेशव सूर्य हैं तो कमलवासिनी श्रीलक्ष्मीजी उनकी प्रभा हैं । श्रीविष्णु पितृगण हैं तो श्रीकमला नित्य पुष्टिदायिनी ( उनकी पत्नी ) स्वधा हैं , विष्णु अति विस्तीर्ण सर्वात्मक आकाश हैं तो लक्ष्मीजी स्वर्गलोक हैं । भगवान् श्रीधर चन्द्रमा हैं तो श्रीलक्ष्मीजी उनकी अक्षय कान्ति हैं , श्रीहरि सर्वगामी वायु हैं तो लक्ष्मीजी जगच्चेष्टा ( जगत्की गति ) और धृति ( आधार ) हैं । हे महामुने । श्रीगोविन्द समुद्र हैं तो हे द्विज ! लक्ष्मीजी उसकी तटभूमि हैं । भगवान् मधुसूदन देवराज इन्द्र हैं तो लक्ष्मीजी इन्द्राणी हैं । चक्रपाणि भगवान् साक्षात् यम हैं तो श्रीकमला यमपत्नी धूमोर्णा हैं ; देवाधिदेव श्रीविष्णु स्वयं कुबेर हैं तो श्रीलक्ष्मीजी साक्षात् ऋद्धि हैं । श्रीकेशव स्वयं वरुण हैं तो महाभागा लक्ष्मीजी गौरी हैं , हे द्विजराज श्रीहरि देवसेनापति स्वामिकार्तिकेय हैं तो श्रीलक्ष्मीजी देवसेना हैं । हे द्विजोत्तम ! भगवान् गदाधर शक्तिके आधार हैं तो लक्ष्मीजी शक्ति हैं ; भगवान् निमेष हैं तो लक्ष्मीजी काष्ठा हैं ; वे मुहूर्त हैं तो ये कला हैं । सर्वेश्वर सर्वरूप श्रीहरि दीपक हैं तो श्रीलक्ष्मीजी ज्योति हैं ; श्रीविष्णु वृक्षरूप हैं तो जगन्माता श्रीलक्ष्मीजी लता हैं । चक्र गदाधर देव श्रीविष्णु दिन हैं तो लक्ष्मीजी रात्रि हैं ; वरदायक श्रीहरि वर ( दूल्हा ) हैं तो पद्मनिवासिनी श्रीलक्ष्मीजी वधू ( दुलहिन ) हैं । भगवान् नद हैं तो श्रीजी नदी हैं । कमलनयन भगवान् ध्वजा ( झण्डा ) हैं तो कमलालया लक्ष्मीजी पताका हैं । जगदीश्वर परमात्मा नारायण लोभ हैं तो लक्ष्मीजी तृष्णा हैं तथा हे मैत्रेय ! रति और राग भी साक्षात् श्रीलक्ष्मी और गोविन्दरूप ही हैं । अधिक क्या कहा जाय , दासाप संक्षेपमें यह कहना चाहिये कि देव , तिर्यक् और मनुष्य आदिमें पुरुषवाची तत्त्व भगवान् श्रीहरि हैं और स्त्रीवाची तत्त्व श्रीलक्ष्मीजी इनके परे और कोई नहीं है ।