ईक्कीसवीं सदी मे धर्म को व्यवहार मे कैसे लाए ?
पाठक के द्वारा पुछे गए प्रश्न
अधर्म क्या है ?
अधर्म के पत्नी का नाम मृषा (झूठ,असत्य) है ।इनके एकपुत्री है जिनका नाम है दुरूक्ति (गाली ) है । गाली का विवाह निॠति से हुआ ,जिससे कलह की उत्पति हुई ,कलह से नरक और मृत्यु का जोङा उत्पन्न हुआ है ।यही है अधर्म का वंश, इससे अलग रहकर आप घोर कलिकाल मे भी धर्म को व्यवहार मे ला सकते है ।पर कोई भी कायर इस मार्ग पर नही चल सकता है । क्योकि यह तो परम पुरुषार्थ का मार्ग है । इसमे आपको काल मृत्यू पर विजय प्राप्त करना है । काल और मृत्यु के आगे तुक्ष मानव की क्या औकात है ।
मोबाइल, कम्प्यूटर,राकेट, एटम बम के इस युग हमलोग यंत्र के अधीन है ।कब क्या हो जाए कहना कठिन है । "यावत बर्तन ताबत वर्तन " धर्म से विमुख लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जाएगी ।या यूं कहे कि अधर्म की श्रृष्टि ही हो रही है ।तो प्राणी कितने सुखी हो रहै है ,या कितने दुखी हो रहे है इसका भान भी नही हो रहा है । संयुक्त परिवार की कल्पना भी नही कर सकते ।सबके सब अकेले है । राष्ट्रवाद, समाजवाद, सम्प्रदायवाद, जातिवाद, परिवारवाद ये सब बातें निजी स्वार्थ की पूर्ति के समय ही होता है ।वास्तविक जीवन मे इनका कोई अस्तित्व नही रह गया है ।
लेकिन, आज के इस युग मे भी जो लोग सनातन धर्म से जुडे है वही सुखी है ।उनका कोई बाल भी बांका नही कर सकते है । धर्माचरण से ही मनुष्य सुखी हो सकता है ।वही किसी भला भी कर सकता है ।क्योकि ,धर्म ही जीने की कला सिखाता है ।धर्म मे सीमा है ।अधर्म मे कोई सीमा शरहद नही है । अधर्म से जुडे व्यक्ति सारे संसार को हड़प कर भी दुखी ही रहते है । किसी को सुख केसे दे सकता है । जिसके पास जो रहेगा वही तो व्यय करेगा ।
अंततः मै तो इतना ही कह सकता हूं कि आहार शुद्धि से बुद्धि शुद्धि किजिए बुद्धि शुद्धि के बाद आचरण शुद्धि किजिए। आचरण शुद्धि होने से आप 21 वीं सदी मे भी धर्म को व्यवहार मे ला सकते है ।यह काम शुरुआत मे असंभव लगता है ,वास्तव मे धीरे धीरे संभव हो जाता है । जैसे हवाई जहाज को चलाना कितना कठिन है ।लेकिन जब समझ जाते है तो उतना ही आसान भी हो जाता है ।ज्यादा ध्यान देगें तो बनाना भी आसान हो जाता है ।
मोबाइल, कम्प्यूटर,राकेट, एटम बम के इस युग हमलोग यंत्र के अधीन है ।कब क्या हो जाए कहना कठिन है । "यावत बर्तन ताबत वर्तन " धर्म से विमुख लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जाएगी ।या यूं कहे कि अधर्म की श्रृष्टि ही हो रही है ।तो प्राणी कितने सुखी हो रहै है ,या कितने दुखी हो रहे है इसका भान भी नही हो रहा है । संयुक्त परिवार की कल्पना भी नही कर सकते ।सबके सब अकेले है । राष्ट्रवाद, समाजवाद, सम्प्रदायवाद, जातिवाद, परिवारवाद ये सब बातें निजी स्वार्थ की पूर्ति के समय ही होता है ।वास्तविक जीवन मे इनका कोई अस्तित्व नही रह गया है ।
लेकिन, आज के इस युग मे भी जो लोग सनातन धर्म से जुडे है वही सुखी है ।उनका कोई बाल भी बांका नही कर सकते है । धर्माचरण से ही मनुष्य सुखी हो सकता है ।वही किसी भला भी कर सकता है ।क्योकि ,धर्म ही जीने की कला सिखाता है ।धर्म मे सीमा है ।अधर्म मे कोई सीमा शरहद नही है । अधर्म से जुडे व्यक्ति सारे संसार को हड़प कर भी दुखी ही रहते है । किसी को सुख केसे दे सकता है । जिसके पास जो रहेगा वही तो व्यय करेगा ।
अंततः मै तो इतना ही कह सकता हूं कि आहार शुद्धि से बुद्धि शुद्धि किजिए बुद्धि शुद्धि के बाद आचरण शुद्धि किजिए। आचरण शुद्धि होने से आप 21 वीं सदी मे भी धर्म को व्यवहार मे ला सकते है ।यह काम शुरुआत मे असंभव लगता है ,वास्तव मे धीरे धीरे संभव हो जाता है । जैसे हवाई जहाज को चलाना कितना कठिन है ।लेकिन जब समझ जाते है तो उतना ही आसान भी हो जाता है ।ज्यादा ध्यान देगें तो बनाना भी आसान हो जाता है ।