21वीं सदी मे धर्म को कैसे व्यवहार मे कैसे लाए ?

0

 ईक्कीसवीं सदी मे धर्म को व्यवहार मे कैसे लाए ?

पाठक के द्वारा पुछे गए प्रश्न 


    Hello Analytics Reporting API V4     Hello Analytics Reporting API V4 किसी चीज को व्यवहार हम तभी लेते है ।जब उसके बारे मे पुरी जानकारी प्राप्त होती है ।जानकारी के अभाव मे हीरा जैसे अमुल्य,रत्न को ठोकर मार देते है ।जानकार दौलत  लुटाकर भी प्राप्त करना चाहता है ।  दुसरी बात किसी भी चीज के प्रति आकर्षण होने के लिए उस विषय वस्तु के गुण लाभ का ज्ञान होना भी जरूरी है । अर्थात जानकारी होना आवश्यक है ।यदि हमे जानकारी मिल जाती है तो  आकर्षण पैदा होता है ।आकर्षण होने के बाद हमें  उस विषय वस्तु को प्राप्त करने की प्रबल इच्छा पैदा होती है ।तब हम उसे प्राप्त करते है ।प्राप्त करने के बाद हम उनके गुण के आधार पर प्रयोग मे लाते है ।कलिकाल के इस समय मे धार्मिक विचारधारा की अवनति ही होगी ।सर्वत्र अधर्म का साम्राज्य व्याप्त हो चुका है । जो जितने बङे धर्मात्मा दिख रहे है ,या दिखा रहे वास्तव मे वह कहीं उससे ज्यादा पापात्मा ही है ।लोग धर्म के नाम पर अधर्म ही कर रहे है ।शार्टकट यानि आसानी से ,विना योग्यता पात्रता के ही सबकुछ प्राप्त कर लेना चाहते है ।लोग धार्मिक नही धनवान बनने चाहते है ।ऐसे मे धार्मिक आचरण, धार्मिक व्यावहार का लोप होना तो लाजमी है । हमने कई लोगों  को देखते है ,तीर्थ जाते है मेरे यहां से सावन मे कांवर लेकर जाते है । अपने साथ गांव के लोगों को अपनी सेवा टहल, रौब अपनी औकात बाबा को दिखाने के लिए ही ले जाते है ।देखने वाले यही  समझते है कि यह तो साक्षात कृष्ण भगवान ही कांवर लेकर बाबा से मिलने जा रहे है । इतने सारे आदमी को अपने पैसे से तीर्थ करा रहे है ।लोग झुमझुम कर के उनकी जयजयकार कर रहे है ।वास्तविकता तो यह है कि उन सभी का धन और धर्म का हरण करने के लिए ही इतना बङा ड्रामा कर रहे है ।इतना ही नही ,उनको बङे आराम से मार भी देते है । ऐसे माहौल मे धार्मिक बात करना या धार्मिक जीवन यापन करना कितना कठिन कार्य है । लेकिन डरने की बात नही है ।क्योकि  धर्मो रक्षति  रक्षितः ।अर्थात जो धर्म की रक्षा करता है ।धर्म उसकी रक्षा करती है ।अथवा " स्वधर्मे निधने श्रेयः पर धर्मो भयावह। " स्वधर्म का पालन तो करना ही चाहिए। स्वधर्म को अच्छी तरह जानकर स्वधर्म का पालन स्वतः होने लगता है । कुसंग का त्याग कर सत्संग करे ।साकाहारी भोजन करे ।स्वाध्याय करे भगवन्नाम कीर्तन करें , जप करे ।पापकर्म से डरे ।सदाचार का पालन करें । सदाचार से सुन्य ब्राह्मण भी चांडाल हो जाता है । शास्त्र विहित कर्म करने से ,मनमाने कर्म,आचरण न करने से आप 21 सदी हो या 99 वी सदी   धर्म को व्यवहार मे ला सकते है । धर्म तो सभी समय अपने अस्तित्व मे है ।उसमे तोङ जोङ करना ही अधर्म है । सत्य, दया,दान, और शौच यही तो धर्म के चार पैर है ।इनकी सेवा करे । 
अधर्म क्या है ?  
अधर्म के पत्नी का नाम मृषा (झूठ,असत्य) है ।इनके एकपुत्री है जिनका नाम है दुरूक्ति  (गाली ) है । गाली का विवाह निॠति से हुआ ,जिससे कलह की उत्पति हुई ,कलह से नरक और मृत्यु का जोङा उत्पन्न हुआ है ।यही है अधर्म का वंश, इससे अलग रहकर आप घोर कलिकाल मे भी धर्म को व्यवहार मे ला सकते है ।पर कोई भी कायर इस मार्ग पर नही चल सकता है । क्योकि यह तो परम पुरुषार्थ का मार्ग है । इसमे आपको काल मृत्यू पर विजय प्राप्त करना है । काल और मृत्यु के आगे तुक्ष मानव की क्या औकात है ।
मोबाइल, कम्प्यूटर,राकेट, एटम बम के इस युग हमलोग यंत्र के अधीन है ।कब क्या हो जाए कहना कठिन है । "यावत बर्तन ताबत वर्तन " धर्म से विमुख लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जाएगी ।या यूं कहे कि अधर्म की श्रृष्टि ही हो रही है ।तो प्राणी कितने सुखी हो रहै है ,या कितने दुखी हो रहे है इसका भान भी नही हो रहा है । संयुक्त परिवार की कल्पना भी नही कर सकते ।सबके सब अकेले है । राष्ट्रवाद, समाजवाद, सम्प्रदायवाद, जातिवाद, परिवारवाद ये सब बातें निजी स्वार्थ की पूर्ति के समय ही होता है ।वास्तविक जीवन मे  इनका कोई अस्तित्व नही रह गया है ।
लेकिन, आज के इस युग मे भी जो  लोग सनातन धर्म से जुडे है वही सुखी है ।उनका कोई बाल  भी बांका नही कर सकते है । धर्माचरण से ही मनुष्य सुखी हो सकता है ।वही किसी भला भी कर सकता है ।क्योकि ,धर्म ही जीने की कला सिखाता है ।धर्म मे सीमा है ।अधर्म मे कोई सीमा शरहद नही है । अधर्म से जुडे व्यक्ति सारे संसार को हड़प कर भी दुखी ही रहते है ।  किसी को सुख केसे दे सकता है । जिसके पास जो रहेगा वही तो व्यय करेगा ।
अंततः मै तो इतना ही कह सकता हूं कि आहार शुद्धि से बुद्धि शुद्धि किजिए बुद्धि शुद्धि के बाद आचरण शुद्धि किजिए। आचरण शुद्धि होने से आप 21 वीं सदी मे भी धर्म को व्यवहार मे ला सकते है ।यह काम शुरुआत मे असंभव लगता है ,वास्तव मे धीरे धीरे संभव हो जाता है । जैसे हवाई जहाज को चलाना कितना कठिन है ।लेकिन जब समझ जाते है तो उतना ही आसान भी हो जाता है ।ज्यादा ध्यान देगें तो बनाना भी आसान हो जाता है । 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Please Select Embedded Mode To show the Comment System.*

pub-8514171401735406
To Top