Atharah smariti aur unke lekhak स्मृति और लेखक

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  अठारह स्मृतियाँ और उनके रचयिता 


HAR HAR MAHADEV 



धर्म का रहस्य अति गूढ है ।समझने के लिए इन सबको पढना चाहिए। 

मनुस्मृति अत्रै बैष्नवीय हारीतक जाग्यबल्क्य अंगिरा सनैश्चर सँवृतक कात्यायनि सांडिल्य गौतमी बसिठी सुरगुरु साताताप पारासर क्रतु मुनि आसा पास उदार धी परलोक लोक दस आठ सुमृति जिन उच्चरी तिन पद सरसिज भाल मो ॥ १८

  मनु अत्रि , विष्णु , हारीत , यम , याज्ञवल्क्य , अंगिरा , शनि , संवर्तक , कात्यायन , शाण्डिल्य , गौतम , वसिष्ठ , दक्ष , बृहस्पति , शातातप , पराशर तथा महर्षि क्रतु नामवाले जिन अठारह ऋषियोंने स्मृतियोंकी रचना की , उनके चरण - कमलोंमें मैं अपना मस्तक रखता हूँ । आशा तृष्णाके बन्धनसे छुड़ानेके लिये उदार बुद्धिवाले ऋषियोंने स्मृतियाँ बनायी हैं । वे इस लोकमें उन्नति तथा परलोकमें कल्याणका साधन हैं ।। १८ ।। 

यहाँ संक्षेपमें इन स्मृतियों तथा स्मृतिकारोंके सन्दर्भमें विवरण प्रस्तुत है मनुष्य धर्मका मर्म समझ सके , शुद्ध आचरणका महत्त्व जान सके , पाप - पुण्य , नीति - अनीतिको पहचाननेकी सामर्थ्य प्राप्त कर सके तथा देव , पितृ , अतिथि , गुरु आदिके प्रति अपना कर्तव्य समझे एवं अपने कर्तव्य पथपर बढ़ता रहे - यही स्मृतिग्रन्थोंका प्रधान उद्देश्य है , स्मृतियाँ हमें अच्छे आचारवान् बननेकी शिक्षा देती हैं , सद्व्यवहार सिखाती हैं , सच्चा मानव बननेकी प्रेरणा देते हुए अपने कर्तव्योंका अवबोध कराती हैं और प्रभुप्राप्तिके मार्गको प्रशस्त करती हैं । इस दृष्टि से धर्मशास्त्रकारों ( स्मृतिकारों ) का जगत्पर महान् उपकार है ।

 स्मृतियाँ अनेक हैं , किंतु श्रीनाभादासजीने अपने भक्तमालमें जिन अठारह स्मृतियोंके प्रणयनकर्ता आचार्यों तथा उनके स्मृतियोंका नाम प्रमुखरूपसे दिया है , ओयहाँ संक्षेपमें उन्हींके विषयमें कुछ विवरण प्रस्तुत है 

( १ ) मनुस्मृति - राजर्षि मनु और उनके धर्मशास्त्र मनुस्मृतिका सनातनधर्ममें विशेष स्थान है । धर्मशास्त्रकारोंमें मनुका अत्यन्त गौरव है , सभी स्मृतियोंमें मनुस्मृतिका प्राधान्य है ' प्राधान्यं हि मनोः स्मृतम् । ' मनुजीद्वारा निर्दिष्ट मानवधर्मशास्त्र ( मनुस्मृति ) विश्वके सच्चे संविधानके रूपमें और सभी धर्म कर्मो के निर्णय  के लिए सर्वोपरि मान्य है । मनुस्मृति बारह अध्यायों में उपनिबद्ध है । इसके उपदेश तथा इसमें बताये गए  विधि विधान सभी के लिए अत्यंत कल्याणकारी  है ।

2      अत्रि - अत्रिस्मृति एवं अनिसंहिता के प्रणेता महर्षि अत्रि वैदिक मन्त्रद्रष्टा ऋषि हैं । मे ब्रह्माजीके मानसपुत्र हैं तथा सप्तर्षियोंमें परिगणित हैं । ये दिव्य ज्ञान - विज्ञानसे सम्पन्न एवं भगवान्‌के अनन्य भक्त हैं । कर्दमप्रजापतिकी पुत्री देवी अनसूया इनकी धर्मपत्नी हैं , जो पतिव्रताओंका आदर्श है । (

 ३ ) विष्णुस्मृति - भगवान् विष्णुद्वारा धरा  ( पृथ्वी ) देवीको दिया गया कल्याणकारी उपदेश वैष्णव धर्मशास्त्र कहलाता है । यह सूत्रों तथा श्लोकोंके रूप में उपनिबद्ध है । गीताकी तरह इसे भी भगवद्वाणी कहा गया है । इस स्मृतिमें एक सौ अध्याय है ।

 ( ४ ) हारीतस्मृति- परम वैष्णव महर्षि हारीतके नामसे तीन स्मृतियाँ प्राप्त होती हैं- हारीतस्मृति , समुहारीतस्मृति तथा वृद्धहारीत । महाभारतमें हारीतजीके नामसे हारीतगीता भी प्राप्त होती है । उसके उपदेश बड़े ही कल्याणकारी हैं । महर्षि हारीत भगवान् विष्णुके अनन्य उपासक थे । अपनी स्मृतियोंमें उन्होंने उनकी उपासनापद्धति तथा मन्त्रोंका बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है ।

 ( ५ ) यमस्मृति – धर्मराज यम भगवान् सूर्य और देवी संज्ञाके पुत्र हैं । ये जीवोंके कर्मोंके साक्षी , उनका नियमन करनेवाले होनेके कारण यम तथा धर्मरूप होनेके कारण धर्म या धर्मराज कहलाते हैं । जीवों को उनके कर्मानुसार अच्छा - बुरा फल प्रदानकर उन्हें शुद्ध एवं पवित्र बनाना तथा भगवान्के मार्गमें प्रवृत्त कराना धर्मराज यमका मुख्य कार्य है । इन्होंने भगवन्नाम महिमाको कल्याणका अत्यन्त सुगम उपाय बताया है । इनकी तीन स्मृतियाँ प्राप्त होती हैं - यमस्मृति , लघुयमस्मृति और बृहद्यमस्मृति प्रधानरूपसे तीनों स्मृतियों में प्रायश्चित्त सम्बन्धी विधान निरूपित हैं । 

( ६ ) याज्ञवल्क्यस्मृति- रामकथाके प्रवक्ता महर्षि याज्ञवल्क्यजी महान् योगी , अध्यात्मवेत्ता तथा धर्मके निगूढ़ तत्त्वका ज्ञान रखनेवाले आचार्य हैं । ये उच्चकोटिके भगवद्भक्त हैं । स्मृतिकारोंमें याज्ञवल्क्यजीका स्थान बहुत ही विशिष्ट है । याज्ञवल्क्यस्मृति , योगियाज्ञवल्क्यस्मृति , बृहद्योगियाज्ञवल्क्यस्मृति आदि स्मृतियाँ उनके नामसे विख्यात हैं । याज्ञवल्क्यस्मृतिमें आचार , व्यवहार तथा प्रायश्चित्त नामक तीन अध्याय हैं और अध्यायोंके अन्तर्गत अनेक प्रकरण हैं । 

( ७ ) अंगिरास्मृति - महर्षि अंगिरा ब्रह्माजीके पुत्र हैं । कर्दमऋषिकी पुत्री श्रद्धा इनकी धर्मपत्नी हैं । देवगुरु बृहस्पति , उतथ्य तथा संवर्त इनके पुत्र हैं और सिनीवाली , कुहू , राका तथा अनुमति इनकी चार दिव्य कन्याएँ हैं । महर्षि अंगिरा अथर्ववेदके प्रवर्तक हैं । इसलिये ये अथर्वा भी कहलाते हैं । इनकी गणना सप्तर्षियों में भी है । इनके जीवन दर्शनका सार यही है कि परात्पर पुरुषोत्तमको तत्त्वतः जान लेनेपर इस जीवात्माके हृदयकी गाँठ खुल जाती है , सम्पूर्ण संशय कट जाते हैं और समस्त शुभाशुभ कर्म नष्ट हो जाते हैं , इसी बातको उन्होंने मुण्डकोपनिषद् ( २। २१८ ) -में महाशाल शौनकजीको बताया है — ' 

भिद्यते हृदयग्रन्थिश्च्छिद्यन्ते सर्वसंशयाः । क्षीयन्ते चास्य कर्माणि तस्मिन् दृष्टे परावरे ॥ '

 इनके नामसे दो वर्णन है । स्मृतियाँ प्राप्त होती हैं । इनमें मुख्यरूपसे गृहस्थाश्रमके सदाचार , गोसेवा , पंचमहायज्ञ तथा प्रायश्चित्तविधानका

 ( ८ ) शनैश्चरस्मृति - शनि या शनैश्चर भगवान् सूर्यके पुत्र हैं । श्रीनाभादासजीने इनका धर्मशास्त्रकारों में परिगणन किया है

 । ( ९ ) संवर्तस्मृति - आध्यात्मिक शक्तिसम्पन्न तथा अध्यात्मवेत्ताओं और धर्माचरणके स्वरूपका प्रतिपादन करनेवालों में महात्मा संवर्त विशेष रूपसे परिगणनीय हैं । ये महर्षि अंगिराके पुत्र और देवगुरु बृहस्पतिके छोटे भाई हैं । इनका उदात्त चरित वेद , इतिहास , पुराण तथा महाभारतमें विस्तारसे आया है । भगवान्के भक्तों तथा भक्तिके आचार्योंमें इनकी बड़ी प्रतिष्ठा है । ये परम शिवभक्त , गायत्रीके महान् उपासक , भक्तोंके परम उपास्य तथा मन्त्रद्रष्टा वामदेव , मार्कण्डेय आदि ऋषियोंके परम गुरु हैं । पुराणेतिहास ग्रन्थों में वर्णित है कि ये अवधूत - वेषमें गुप्तरीतिसे भगवत् - ध्यानमें निमग्न हो सर्वत्र विचरण किया करते हैं और भगवान् विश्वनाथकी नगरी काशीपुरी इन्हें अत्यन्त प्रिय है । इनकी बनायी हुई संवर्तस्मृति यद्यपि संक्षिप्त है , किंतु इसके उपदेश बड़े ही उपादेय तथा कल्याणकारक हैं । इस स्मृतिमें वर्णाश्रमधर्म , प्रायश्चित्त , गायत्रीजप तथा दानकी महिमा विशेषरूपसे आयी है । 

( १० ) कात्यायनस्मृति - महर्षि कात्यायनका अत्यन्त प्राचीन धर्मशास्त्रकारोंमें परिगणन है । प्राचीन भारतीय व्यवहार एवं व्यवहार विधिके नियमोंमें तथा स्त्रीधनकी मीमांसामें महर्षि कात्यायनके वचन अत्यन्त प्रामाणिक माने गये हैं । परवर्ती सभी निबन्धकारोंने इनके वचनोंको उद्धृत किया है ।

 ( ११ ) शाण्डिल्यस्मृति - परम भागवत ऋषि शाण्डिल्यजी भक्तिके आचार्य हैं । इनका भक्तिसूत्र अति प्रसिद्ध है । इनके अनुसार भगवान्‌में परम अनुराग ही भक्ति है – ' सा परानुरक्तिरीश्वरे । ' इन्होंने भगवद्भजनको ही सबसे बड़ा कल्याणकारक बताया है - ' क्षेममात्यन्तिकं विप्रा हरेभंजनमेव हि । ' ( शाण्डिल्यसंहिता १।९ ) आचार्यजी भगवान्‌का सर्वोपरि गुण बताते हुए कहते हैं कि ' मुख्यं तस्य हि कारुण्यम् । ' ( शाण्डिल्यसूत्र ४ ९ ) अर्थात् भगवान्‌का मुख्य गुण है कारुण्य या दयालुता । इनका धर्मशास्त्रीय ग्रन्थ शाण्डिल्यस्मृति वैष्णवोंकी परम आचारसंहिता है । 

( १२ ) गौतमस्मृति - महर्षि गौतम वर्तमान वैवस्वत मन्वन्तरके सप्तर्षियोंमें एक ऋषि हैं । ये ब्रह्माजीके मानस पुत्र हैं । देवी अहल्या इनकी पत्नी हैं । महर्षि गौतमके नामसे एक धर्मसूत्र तथा एक स्मृति प्राप्त होती है । गौतमस्मृतिमें मुख्यरूपसे धर्माचरणकी महिमा , पंचयज्ञ , गोमहिमा , आपद्धर्म , भोजनविधि , तीर्थमहिमा तथा भगवद्भक्तिकी महिमा वर्णित है । 

( १३ ) वसिष्ठस्मृति- क्षमाधर्म तथा आचार - निष्ठाके परमादर्श महर्षि वसिष्ठ वैदिक मन्त्रद्रष्टा ऋषि हैं । आप ब्रह्माजीके मानस पुत्र हैं । आपकी पत्नी देवी अरुन्धती पतिव्रताओंकी आदर्श हैं । ये भगवान् श्रीरामके गुरु रहे हैं तथा उनके परम भक्त भी हैं । भगवद्भक्तोंमें आपकी प्रथम गणना होती है । आपकी गोसेवा और गोभक्ति प्रसिद्ध ही है । आपकी धर्मशास्त्रीय तथा आचारसम्बन्धी मर्यादाएँ वसिष्ठधर्मसूत्र तथा वसिष्ठस्मृतिमें उपनिबद्ध हैं । धर्माधर्म तथा कर्तव्याकर्तव्यके निर्णयमें वसिष्ठजीके वचनोंका विशेष गौरव है । 

( १४ ) दक्षस्मृति – दक्षस्मृतिके निर्माता प्रजापति दक्ष ब्रह्माजीके पुत्र हैं । मनुपुत्री प्रसूति इनकी धर्मभार्या थीं । शंकरपली भगवती सती इन्हीं दक्षकी पुत्री हैं । इसीलिये ये दाक्षायणी भी कहलाती हैं । प्रजापति गृहस्थधर्म , सदाचार एवं अध्यात्मयोगज्ञान निरूपित है । दक्ष भगवान् विष्णुके लघुशातातप , वृद्धशातातप तथा शातातपीय कर्मविपाकसंहिता मुख्य रूपसे इनमें पातक उपपातक महापातकोंका निरूपण तथा उनका प्रायश्चित्त वर्णित है । ( १७ ) पराशरस्मृति – ' कलौ पाराशरः स्मृतः ' इस वचनके अनुसार कलियुगमें महात्मा पराशरजीका कहा हुआ धर्म विशेष मान्यताप्राप्त है । पराशरजी कृष्णद्वैपायन श्रीवेदव्यासजीके पिता हैं । विष्णुपुराण इन्हींकी रचना है । पराशरस्मृतिमें बारह अध्याय हैं । इन्हींके नामसे एक बृहद् पाराशरस्मृति भी प्राप्त होती है । ( १८ ) क्रतुस्मृति – महर्षि क्रतु ब्रह्माजीके मानसपुत्र हैं । ये धर्मज्ञ , सत्यवादी और व्रतपरायण महात्मा हैं । बालखिल्य ऋषिगण इन्हीं महर्षिके पुत्र हैं । इन महात्माने धर्मकी व्यवस्थाके लिये जो शास्त्र बनाया , वह क्रतुस्मृतिके नामसे कहा जाता है । श्रीनाभादासजीने इनका स्मृतिकारों में परिगणन किया है । अनन्य भक्त और उनके कृपापात्र हैं । सात अध्यायों में उपनिबद्ध दक्षस्मृतिमें मुख्य रूपसे

 ( १५ ) बृहस्पतिस्मृति- आचार्य बृहस्पति देवोंके भी गुरु हैं । ये वाणी - बुद्धि एवं ज्ञानके अधिष्ठाता तथा महान् परोपकारी हैं । ये महर्षि अंगिराके पुत्र हैं । इनकी बनायी स्मृति संक्षिप्त होनेपर भी बड़ी ही उपयोगी है । इसमें मुख्यरूपसे भूमिदान एवं गोदानकी और भगवद्भक्तिकी महिमा आयी है ।

 ( १६ ) शातातपस्मृति – महर्षि याज्ञवल्क्यजीने विशिष्ट धर्मशास्त्रकारों में महर्षि शातातपजीका उल्लेख किया है । ये महर्षि शरभंगके गुरु हैं । इन्होंने अनेक प्रकारके तपोंका अनुष्ठान किया और तप करते करते ये अत्यन्त क्षीणकाय हो गये थे । इसीलिये ये शातातप कहलाते हैं । कर्मविपाक ( अच्छे - बुरे कर्मोंका फल ) -मीमांसाके लिये ये ही सर्वाधिक प्रमाण माने गये हैं । इनके नामसे तीन स्मृतियाँ प्राप्त होती हैं 

लघुशातातप , वृद्धशातातप तथा शातातपीय कर्मविपाकसंहिता मुख्य रूपसे इनमें पातक उपपातक महापातकोंका निरूपण तथा उनका प्रायश्चित्त वर्णित है । 

( १७ ) पराशरस्मृति – ' कलौ पाराशरः स्मृतः ' इस वचनके अनुसार कलियुगमें महात्मा पराशरजीका कहा हुआ धर्म विशेष मान्यताप्राप्त है । पराशरजी कृष्णद्वैपायन श्रीवेदव्यासजीके पिता हैं । विष्णुपुराण इन्हींकी रचना है । पराशरस्मृतिमें बारह अध्याय हैं । इन्हींके नामसे एक बृहद् पाराशरस्मृति भी प्राप्त होती है ।

 ( १८ ) क्रतुस्मृति – महर्षि क्रतु ब्रह्माजीके मानसपुत्र हैं । ये धर्मज्ञ , सत्यवादी और व्रतपरायण महात्मा हैं । बालखिल्य ऋषिगण इन्हीं महर्षिके पुत्र हैं । इन महात्माने धर्मकी व्यवस्थाके लिये जो शास्त्र बनाया , वह क्रतुस्मृतिके नामसे कहा जाता है । श्रीनाभादासजीने इनका स्मृतिकारों में परिगणन किया है ।

हरिशरणम हरिशरणम हरिशरणम 

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