दुष्ट कभी संतुष्ट नही हो सकता है ।
संतुष्ट ,सुख ,आनंद, मस्ती ,आदि सुविधाओ को खोजेगे तो आपको सन्मार्ग यानि सनातन धर्म कर्म के पथ पर अग्रसर होना चाहिए।
उदाहरण चाणक्य पत्थर के शिला पर लेटे थे ,उसी समय एक आदमी आया । चाणक्य अपने स्थिति मे स्थित थे ।वह बोला ,तुम मुझे देखकर सैल्यूट नही किया ।मेरा सत्कार नही किया ? तुम्ह पता नही कि मै कौन हुं ? चाणक्य सहज भाव से लेटे लेटे ही पुछा ,भाई तुम कौन हो ? आगन्तुक बोला मै विश्व विजेता सिकंदर हुं । चाणक्य ने पुछा "तुम विश्व विजेता क्यो बना ?" सिकंदर बोला ,ऐश करने के लिए। चाणक्य ने पुछा ,विश्व विजेता कैसे बना ? सिकंदर जबाव दिया ,लाखों-लाख लोगो के खुन की नदी बहाकर। चाणक्य बोले "जिस ऐश के लिए तुमने लाखों-लाख बेकसूर लोगो का खून किया ,उससे कई गुणा ज्यादा ऐश तो हम पत्थर पर लेटे लेटे कर रहे है "। मै तुमको क्यो सलाम करू ? कहा जाता है कि सिकंदर अवाक हो गया ।उसके पास कोई जवाब नहीं ।निरूत्तर हो गया।कुछ देर बाद सिकंदर चाणक्य के चरणोंपर गिरकर मूर्च्छित हो गया ।होश आया तो देखता है ,चाणक्य उसके सिर को अपने हथेली से सहला रहा था ।सिकंदर चाणक्य के चरणो मे समर्पित हो चुका था ।उसने बिना युद्ध किए ही भारत से चला गया ।
मित्र विषेश लिखने से क्या लाभ? सन्मार्ग पर चलने वाले की क्या औकात है ? आपने देख लिया ।
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दुष्ट को संसार की सारी संपति सारी सुख सुविधाओं मिल भी जाए तो भी वह सुखी नही रहता ।तबतक सुखी हो भी नही सकता ,जबतक कि वह दुष्टता त्याग न कर दे ।
हरिशरणम हरिशरणम हरिशरणम।
BHOOPAL MISHRA
SANATAN VEDIC DHARMA KARMA
BHUPALMISHRA35620@GMAIL.COM
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