Sri Ram Charan Chinhya.

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 श्रीरामजीके चरणचिह्न

 अंकुस अंबर कुलिस कमल जव धुजा धेनुपद । संख चक्र स्वस्तिक जंबूफल कलस सुधाह्रद ॥ अर्धचंद्र षटकोन मीन बिंदु ऊरधरेखा । इंद्रधनु पुरुषविशेषा ॥ एते मंगलदायका । त्रयकोन नित बसत अष्टकोन सीतापति पद चरन चिह्न रघुबीर के संतन सदा सहायका ॥६ ॥

 सीतापति श्रीरामचन्द्रजीके श्रीचरणोंमें अंकुश , अम्बर , वज्र , कमल , जव , ध्वजा , गोपद , शंख , चक्र , स्वस्तिक जम्बूफल , कलश , अमृतकुण्ड , अर्धचन्द्र , षट्कोण , मीन , बिन्दु , ऊर्ध्वरेखा , अष्टकोण , त्रिकोण , इन्द्रधनुष औ पुरुष - विशेष — ये बाईस चिह्न विराजते हैं । राघवेन्द्रसरकारके ये चरणचिह्न भक्तोंको मंगलदायक तथा सदा सहायक  है ।

श्रीप्रियादासजी चरणचिह्नोंकी महिमाका निम्न कवित्तोंमें वर्णन करते हुए कहते हैं सन्तनि सहाय काज धारे नृपराज राम चरण सरोजन में चिह्न सुखदाइये । मन ही मतंग मतवारो हाथ आवै नाहिं ताके लिये अंकुश लै धार्यो हिये ध्याइये ॥ सठता सतावै सीत ताही ते अम्बर धर्यो हर्यो जन शोक ध्यान कीन्हे सुख पाइये । ऐसे ही कुलिश पाप पर्वत के फोरिबे को भक्ति निधि जोरिबे को कंज मन लाइये ॥

सन्तोंकी सहायताके लिये राजाधिराज भगवान् श्रीरामचन्द्रजीने अपने चरणकमलोंमें सुख देनेवाले इन चिह्नोंको धारण किया है । मनरूपी उन्मत्त हाथी किसी भी प्रकार वशमें नहीं आता है , इसलिये भगवान्ते अंकुशका चिह्न धारण किया है । मनोजयके लिये अंकुशका ध्यान करना चाहिये । जड़तारूपी जा भक्कको दुःख देता है , इसलिये वस्त्रचिह्न धारण करके प्रभुने उनका शोक दूर किया , भक्तजन ध्यान करके सुख प्राप्त करें । इसी प्रकार पापरूपी पहाड़ोंको फोड़नेके लिये वज्रका चिह्न और भक्तिरू नवनिधि जोड़ने के लिये कमलका चिह्न धारण किया , इनका ध्यान कीजिये ॥ १५ ॥

 जव हेतु सुनो सदा दाता सिद्धि विद्या ही को सुमति सुगति सुख सम्पत्ति निवास है । छिनु में सभीत होत कलि की कुचाल देखि ध्वजा सो विशेष जानो अभैको विश्वास है । गोपद सो है हैं भवसागर नागरनर जो पै नैन हिय के लगावै मिटै त्रास है । कपट कुचाल माया बल सबै जीतिबे को दर को दरस कर जीत्यो अनायास है ॥ १६ ॥ 

जब चिह्नके धारणका कारण सुनिये । यह सर्वविद्या और सिद्धियोंका दाता है , इसमें सुमति , सुगति और सुख - सम्पत्तिका निवास है , ध्यान करनेवालोंको इनकी प्राप्ति होती है । कलियुगको कुटिल गति देखक भक्तलोग क्षणभरमें हो भयभीत हो जाते हैं , विशेष करके उनको निर्भयताका विश्वास दिलाने के लिये भगवा अपने चरणोंमें ध्वजाका चिह्न धारण किया है । चतुर भक्तजन यदि हृदयके नेत्र गोपदचिह्नमें लगायें तो अपर भवसागर गायके खुरके समान छोटा ( सहज पार करनेयोग्य ) हो जाता है और सभी संसारी कष्ट मिट ज हैं । मायाकपट मायाको कुचाल और मायाके सम्पूर्ण बलको जीतनेके लिये प्रभुने शंखचिह्न धारण किया इसका ध्यान करके भकाने सहज हो मायाको जीत लिया ॥ १६ ॥ 


कामहू निशाचर के मारिबे को ' चक्र ' धर्यो मंगल कल्याण हेतु ' स्वस्तिक ' है मानिये । मंगलीक ' ' जंबूफल ' फल चारि हूँ की फल कामना अनेक विधि पूर्ण नित ध्यानिये ॥ ' कलश ' ' सुधा को सर ' भर्यो हरि भक्ति रस , नैन पुट पान कीजै जीजै मन आनिये । भक्ति को बढ़ावे और घटावे तीन तापहूँ को , ' अर्धचन्द्र ' धारण ये कारण हैं जानिये ॥ १७ ॥ 

भगवान्ने कामरूपी निशाचरको मारने के लिये अपने चरण में चक्रचिह्न धारण किया ध्यान करनेवाले के  मंगल और कल्याणके लिये स्वस्तिकरेखा धारण की , ऐसा मानिये अर्थ , धर्म , काम और मोक्ष- चारों फलोंका फल जम्बूफल मंगल करनेवाला और अनेक प्रकारकी कामनाओंको पूर्ण करनेवाला है , इसका नित्य ध्यान कीजिये । अमृतका कलश और अमृतका कुण्ड - ये चिह्न इसलिये धारण किये कि ध्याताके हृदय में भक्तिरस भरे । ध्याननेत्रके कटोरेसे पीकर सदा अमर रहें , भक्तजन मनमें ध्यान करें । अर्धचन्द्र के धारणका कारण यह जानिये कि वह ध्यान करनेवालेके तीनों तापोंको नष्ट करे और भक्तिको बढ़ाये ॥ १७ ॥ विषया भुजंग बलमीक तनमाहिं बसै दास कौ न डसै याते यत्न अनुसर्यो है । ' अष्टकोन ' ' षटकोन ' औ ' त्रिकोन ' जंत्र किये जिये जोई जानि जाके ध्यान उर भर्यो है । ' मीन ' ' विन्दु ' रामचन्द्र कीन्ह्यो वशीकर्ण पाँय ताहि ते निकाय जन मन जात हर्यो है । सागर संसार ताको पारावार पावें नाहिं ' ऊर्ध्वरेखा ' दासन को सेतु बन्ध कर्यो है ॥ १८ ॥ काम आदि विषयरूपी साँप शरीररूपी बाँबीमें बसते हैं , वे भक्तोंको न डॅसें , इसलिये यह उपाय किया है कि अष्टकोण , षट्कोण और त्रिकोण यन्त्र चिह्नोंको धारण किया , ऐसा जानकर जिस - जिसने हृदयमें इनका ध्यान किया , वे विषयरूपी सर्पसे बचे और जीवित रहे अर्थात् उनका निरन्तर भगवान्‌में प्रेम बना रहा । भगवान् श्रीरामचन्द्रजीने अपने चरणकमलमें मीन और बिन्दुचिह्नोंको वशीकरण यन्त्र बनाकर धारण किया , इसोसे बहुत से भक्तोंके मन हरे जाते हैं । संसाररूप सागर अपार है , जिसका कोई पार नहीं पा सकता , इसलिये ऊर्ध्वरेखा धारणकर पुल बाँध दिया है । ध्यान करनेवाले सहजमें ही संसार सागर पार कर जाते हैं ॥ १८ ॥ ' धनु ' पद माहि धर्यो हर्यो शोक ध्यानिनको मानिनको मार्यो मान रावणादि साखिये । ' पुरुष विशेष ' पदकमल बसायो राम , हेतु सुनो अभिराम श्याम अभिलाषिये ॥ सूधो मन सूधी बैन सूधी करतूति सब ऐसो जन होय मेरो , याही के ज्यों राखिये । जो पै बुधिवन्त रसवन्त रूप सम्पत्ति में , करि हिये ध्यान हरिनाम मुख भाषिये ॥ १ ९ ॥ श्रीराघवेन्द्रसरकारने अपने श्रीचरणोंमें इन्द्रधनुषका चिह्न धारण करके ध्यान करनेवाले भक्तोंका दुःख दूर किया और रावण आदि अहंकारियोंके अहंकारका भी धनुषसे ही नाश किया , सो प्रसिद्ध है । पुरुषविशेष चिह्न अपने पदकमलमें बसाया , उसका कारण सुनिये और श्यामसुन्दरको प्राप्त करनेकी अभिलाषा कीजिये । उनका कथन है कि हमारा भक्त यदि सरल मनवाला , सत्य , सरल वचनवाला और शुद्ध सरल कर्मवाला हो तो इसी पुरुष चिह्नके समान मैं चरण - शरणमें रखूँगा । जो जन बुद्धिमान् हॉ , रूप - सम्पत्तिके रसिक हों , वे पूर्ववर्णित इन श्रीचरणचिह्नोंका हृदयमें ध्यान करके मुखसे भगवान्के नामोंका उच्चारण करते रहें ॥ १ ९ ॥

 हरिशरणम हरिशरणम हरिशरणम 

मित्र भगवान श्रीराम के अद्भुत चरणचिह्न का वर्णन आपको श्रीराम के प्रति श्रद्धा, भक्ति, सुख समृद्ध को बढाने वाला है । आशा है पसंद करेंगें ।

आपका 
BHOOPAL MISHRA 
SANATAN VEDIC DHARMA KARMA 
BHUPALMISHRA35620@GMAIL.COM 


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