गरुड पुराण सारोद्धार चौथा अध्याय
नरक प्रदान करने वाले पापकर्म
गरुक उवाच
कैर्गच्छन्ति महामार्गे वैतरण्यां पतन्ति कैः । कैः पापैर्नरके यान्ति तन्मे कथय केशव ॥ १ ॥
गरुडजीने कहा- हे केशव किन पापोंके कारण पापी मनुष्य यमलोकके महामार्गमें जाते हैं और किन पापोंसे वैतरणीमें गिरते हैं तथा किन पापोंके कारण नरकमें जाते हैं ? वह मुझे बताइये ॥ १
श्रीभगवानुवाच सदैवाकर्मनिरता ; शुभकर्मपराङ्मुखाः । नरकान्नरकं यान्ति दुःखाहुःखं भयाद्भयम् ॥ २
धर्मराजपुरे यान्ति त्रिभिद्वारैस्तु धार्मिकाः । पापास्तु दक्षिणद्वारमार्गेणैव व्रजन्ति तत् ॥ ३
श्रीभगवान् बोले- सदा पापकर्मोंमें लगे हुए शुभ कर्मसे विमुख प्राणी एक नरकसे दूसरे नरकको , एक दुःखके बाद दूसरे दुःखको तथा एक भयके बाद दूसरे भयको प्राप्त होते हैं ॥ २
धार्मिक जन धर्मराजपुरमें तीन दिशाओंमें स्थित द्वारोंसे जाते हैं और पापी पुरुष दक्षिण - द्वारके मार्गसे वहाँ जाते हैं ॥
अस्मिन्नेव महादुःखे मार्गे वैतरणी नदी । तत्र ये पापिनो यान्ति तानहं कथयामि ते ॥ ४
ब्रह्मघ्नाश्च सुरापाश्च गोघ्रा वा बालघातकाः । स्त्रीघाती गर्भपाती च ये च प्रच्छन्नपापिनः ॥ ५
ये हरन्ति गुरोद्रव्यं देवद्रव्यं द्विजस्य वा स्त्रीद्रव्यहारिणो ये च बालद्रव्यहराश्च ये ॥ ६
ये ऋणं न प्रयच्छन्ति ये वै न्यासापहारकाः । विश्वासघातका ये च सविषान्नेन मारकाः ॥ ७
दोषग्राही गुणाश्लाघी गुणवत्सु समत्सराः । नीचानुरागिणो मूढाः सत्सङ्गतिपराङ्मुखाः ॥ ८
तीर्थसज्जनसत्कर्मगुरुदेवविनिन्दकाः । पुराणवेदमीमांसान्यायवेदान्तदूषकाः हर्षिता दुःखितं दृष्ट्वा हर्षिते दुःखदायकाः । दुष्टवाक्यस्य वक्तारो दुष्टचित्ताश्च ये सदा ॥ १०
इसी महादुःखदायी ( दक्षिण ) मार्गमें वैतरणी नदी है , उसमें जो पापी पुरुष जाते हैं , उन्हें मैं तुम्हें बताठा हूँ ॥४
जो ब्राह्मणोंकी हत्या करनेवाले , सुरापान करनेवाले , गोघाती , बालहत्यारे , स्त्रीको हत्या करनेवाले , गर्भपात करनेवाले और गुप्तरूपसे पाप करनेवाले हैं , जो गुरुके धनको हरण करनेवाले , देवता अथवा ब्राह्मणका धन हरण करनेवाले , स्त्रीद्रव्यहारी , बालद्रव्यहारी हैं , जो ऋण लेकर उसे न लौटानेवाले , धरोहरका अपहरण करनेवाले , विश्वासघात करनेवाले , विषान्न देकर मार डालनेवाले , दूसरेके दोषको ग्रहण करनेवाले , गुणोंको प्रशंसा न करनेवाले , गुणवानोंके साथ डाह रखनेवाले , नौचोंके साथ अनुराग रखनेवाले , मूढ , सत्संगतिसे दूर रहनेवाले हैं , जो तीर्थों , सज्जनों , सत्कर्मों , गुरुजनों और देवताओंकी निन्दा करनेवाले हैं , पुराण , वेद , मीमांसा , न्याय और वेदान्तको दूषित करनेवाले हैं ॥५ - ९ ॥
दुःखी व्यक्तिको देखकर प्रसन्न होनेवाले , प्रसन्नको दुःख देनेवाले , दुवंचन बोलनेवाले तथा सदा दूषित चित्तवृत्तिवाले हैं ॥ १० ॥
न शृण्वन्ति हितं वाक्यं शास्त्रवार्ता कदापि न आत्मसम्भाविताः स्तब्धा मूढाः पण्डितमानिनः ॥ ११
एते चान्ये च बहवः पापिष्ठा धर्मवर्जिताः । गच्छन्ति यममार्गे हि रोदमाना दिवानिशम् ॥ १२
यमदूर्तस्ताङ्यमाना प्रति । तस्यां पतन्ति ये पापास्तानहं कथयामि ते ॥१३
वैतरणी यान्ति जो हितकर वाक्य और शास्त्रीय वचनोंको कभी न सुननेवाले , अपनेको सर्वश्रेष्ठ समझनेवाले , घमण्डी , मूर्ख होते हुए अपनेको विद्वान् समझनेवाले हैं - ये तथा अन्य बहुत पापका अर्जन करनेवाले अथमी जीव राठ - दिन रोते हुए यममार्ग जाते हैं॥११-१२
यमदूतांकि द्वारा पीटे जाते हुए ( ये पापी ) वैतरणीकी और जाते हैं और उसमें गिरते हैं , ऐसे उन पापियोंकि विषयमें मैं तुम्हें बताता हूँ ॥ १३
मातरं येऽवमन्यन्ते गुणसहस्रेषु दोषानारोपयन्ति पितरं गुरुमेव च । आचार्य चापि पूपं च तस्य मजन्ति ते नगः ॥ १४
पतिव्रतां साधुशील कुलीनां विनयान्विताम् । स्त्रियं त्यजन्ति ये द्वेषाद्वैतरण्या पतन्ति ॥ १५
सतां ये । तेष्ववज्ञां च कुर्वन्ति वैतरण्यां पतन्ति ते ॥१६
जो माता , पिता , गुरु , आचार्य तथा पूज्पजनोंको अपमानित करते हैं , वे मनुष्य वैतरणीमें डूबते हैं ॥ १४
जो पुरुष पतिव्रता , सच्चरित्र , उत्तम कुलमें उत्पन्न , विनयसे युक्त स्त्रीको द्वेषके कारण छोड़ देते हैं , वे वैठरणीमें पड़ते हैं ॥ १५
जो हजारों गुणोंक होनेपर भी सत्पुरुषोंमें दोषका आरोपण करते हैं और उनकी अवहेलना करते हैं , वे वैतरणीमें पड़ते हैं ॥ १६
ब्राह्मणाय प्रतिश्रुत्य यथार्थ न ददाति यः । आहूय नास्ति यो ब्रूयात्तयोर्वासच सन्ततम् ॥ १७
स्वयं दत्ताऽपहर्ता च दानं दत्वाऽनुतापकः । परवृत्तिहरश्चैव दाने दत्ते निवारकः ॥ १८
यज्ञविध्वंसकश्चैव कथाभङ्गकरश्च यः । क्षेत्रसीमाहरश्चैव यश्च गोचरकर्षकः॥ १ ९
ब्राह्मणो रसविक्रेता यदि स्याद् वृषलीपतिः । वेदोक्तयज्ञादन्यत्र स्वात्मार्थं पशुमारकः ॥ २०
ब्रह्मकर्मपरिभ्रष्टो मांसभोक्ता च मद्यपः । उच्छृङ्गुलस्वभावो यः शास्त्राध्ययनवर्जितः ॥ २१
वेदाक्षर पठेच्छूद्रः कापिलं यः पयः पिवेत् । धारयेद् ब्रह्मसूत्रं च भवेद्वा ब्राह्मणीपतिः ॥ २२
राजभार्याऽभिलाषी च परदारापहारकः । कन्यायां कामुकश्चैव सतीनां दूषकश्च यः ॥ २३ ॥
वचन दे करके जो ब्राह्मणको यथार्थरूपमें दान नहीं देता है और बुला करके जो व्यक्ति ' नहीं है ' ऐसा कहता है , वे दोनों सदा वैतरणीमें निवास करते हैं ॥ १७
स्वयं दी हुई वस्तुका जो अपहरण कर लेता है , दान देकर पश्चाताप करता है , जो दूसरेकी आजीविकाका हरण करता है , दान देनेसे रोकता है , यज्ञका विध्वंस करता है , कथा - भङ्ग करता है , क्षेत्रकी सीमाका हरण कर लेता है और जो गोचरभूमिको जीतता है , वह बैठरणीमें पड़ता है । ब्राह्मण होकर रसविक्रय करनेवाला , वृषलीका पति ( शूद्र स्त्रीका ब्राह्मणपति ) , वेदप्रतिपादित यज्ञके अतिरिक्त अपने लिये पशुओंकी हत्या करनेवाला , ब्रह्मकर्मसे च्युत , मांसभोजी , मद्य पीनेवाला , उच्छृत स्वभाववाला शास्त्र के अध्ययनसे रहित ( ब्राह्मण ) , वेद पढ़नेवाला शूद्र , कपिलाका दूध पीनेवाला शूह , यज्ञोपवीत धारणकरनेवाला शूद्र , ब्राह्मणीका पति बननेवाला शूद्र , राजमहिषीके साथ व्यभिचार करनेवाला , परायी स्त्रीका अपहरण करनेवाला , कन्याके साथ कामाचारकी इच्छा रखनेवाला तथा जो सतीत्व नष्ट करनेवाला है- ॥१८- २३
एते चाऽन्ये च बहवो निषिद्धाचरणोत्सुकाः । विहितत्यागिनो मूढा वैतरण्यां पतन्ति ते ॥ २४
सर्व मार्गमतिक्रम्य यान्ति पापा यमालये । पुनर्यमाज्ञयाऽऽगत्य दूतास्तस्यां क्षिपन्ति तान् ॥ २५
या वै धुरन्धरा सर्वधरियाणां खगाधिप । अतस्तस्यां प्रक्षिपन्ति वैतरण्यां च पापिनः ॥ २६
ये सभी तथा इसी प्रकार और भी बहुत निषिद्धाचरण करनेमें उत्सुक तथा शास्त्रविहित कर्मोको त्यागनेवाले वे मूढजन वैतरणीमें गिरते हैं ॥ २४
सभी मार्गोंको पार करके पापी यमके भवनमें पहुंचते हैं और पुनः यमकी आज्ञासे आकर दूत लोग उन्हें वैतरणीमें फेंक देते हैं ॥ २५
हे खगराज ! यह वैतरणी नदी ( कष्ट प्रदान करनेवाले ) सभी प्रमुख नरकोंमें भी सर्वाधिक कष्टप्रद है । इसलिये यमदूत पापियोंको उस वैतरणीमें फेंकते हैं ॥ २६
कृष्णा गौर्यदि नो दत्ता नौवंदेहक्रियाकृताः । तस्यां भुक्त्वा महद् दुःखं यान्ति वृक्षं तटोद्भवम् ॥ २७
कूटसाक्ष्यप्रदातारः छेदयन्त्यतिवृक्षांश्च कूटधर्मपरायणाः । छलेनार्जनसंसक्ताश्चार्यवृत्त्या च जीविनः ॥ २८
वनारामविभञ्जकाः । व्रतं तीर्थं परित्यज्य विधवाशीलनाशकाः ॥ २ ९
जिसने अपने जीवनकालमें कृष्णा ( काली ) गौका दान नहीं किया अथवा मृत्युके पश्चात् जिसके उद्देश्य से बान्धवोंद्वारा कृष्णा गौ नहीं दो गयी तथा जिसने अपनी औवदैहिक क्रिया नहीं कर लो या जिसके उद्देश्यसे चौथा अध्याय औवदैहिक क्रिया नहीं की गयी हो , वे वैतरणीमें महान् दुःख भोग करके बैतरणी तटस्थित शाल्मली - वृक्षमें जाते हैं ॥ २७
जो झूठी गवाही देनेवाले , धर्मपालनका ढोंग करनेवाले , छलसे धनका अर्जन करनेवाले , चोरीद्वारा आजीविका चलानेवाले , अत्यधिक वृक्षोंको काटनेवाले , वन और वाटिकाको नष्ट करनेवाले , व्रत और तीर्थका परित्याग करनेवाले , विधवाके शीलको नष्ट करनेवाले हैं॥२८-२९
परं मनसि धारयेत् । इत्याद्याः शाल्मलीवृक्षे भुञ्जन्ते बहुताडनम् ॥ ३०
भर्तारं दूषयेन्नारी ताडनात् पतितान् दूताः क्षिपन्ति नरकेषु तान् पतन्ति तेषु ये पापास्तानहं कथयामि ते ॥ ३१
नास्तिका भिन्नमर्यादा : कदर्या विषयात्मकाः । दाम्भिकाश्च कृतघ्नाश्च ते वै नरकगामिनः ॥ ३२
कूपानां च तडागानां वापीनां देवसद्मनाम् । प्रजागृहाणां भेत्तारस्ते वै नरकगामिनः ॥ ३३
जो स्त्री अपने पतिको दोष लगाकर परपुरुषमें आसक्त होनेवाली है - ये सभी और इस प्रकारके अन्य पापी भी शाल्मली वृक्षद्वारा बहुत ताडना प्राप्त करते हैं ॥ ३०
पीटनेसे नीचे गिरे हुए उन पापियोंको यमदूत नरकोंमें फेंकते हैं । उन नरकोंमें जो पापी गिरते हैं , उनके विषय में मैं तुम्हें बतलाता हूँ ॥ ३१
( वेदकी निन्दा करनेवाले ) नास्तिक , मर्यादाका उल्लंघन करनेवाले , कंजूस , विषयोंमें डूबे रहनेवाले , दम्भी तथा कृतघ्र मनुष्य निश्चय ही नरकॉमें गिरते हैं ॥ ३२
जो कुँआ , तालाब , बावली , देवालय तथा सार्वजनिक स्थान ( धर्मशाला आदि ) को नष्ट करते हैं , वे निश्चय ही नरकमे जाते हैं ०३३
विसृत्यानन्ति ये दाराञ्छिशून् भृत्यस्तथा गुरुन् । उत्सृज्य पितृदेवन्या शंकुभिः सेतुभिः काष्ठैः पाषाणैः कण्टकंस्तथा । ये मार्गमुन्यात ते वे नर्क गामिनः। ।
स्त्रियों , छोटे बच्चों , नौकरों तथा श्रेष्ठजनोंको छोड़कर एवं पितरों और देवताओ की पूजा का परित्याग करके जो भोजन करते है, निश्चय ही वे नरकगामी होते हैं ॥३५
जो मार्गको कीलोंसे पुलों से , लङकियों से तथा पत्थरों एवं कांटो से रोकते है, निश्चय ही वे नरकगमी होते है ।
शिवं शिवां हरि सूर्य गणेशं सद्गुरुं बुधम् । न पूजयन्ति ये मन्दासते वे नरकगमिनः ३६
आरोग्य दासी शयने विप्रो गच्छेदधोगतिम् । प्रजामुत्पाद्य शूद्रायां ब्याब्राह्मया देव हीयते ३७
न नमस्कारयोग् द्विजोऽधमः । तं पूजयन्ति ये मूढास्ते वै नरकगामिनः ॥ ३८
ब्राह्मणानां च कलहे गोयुद्धे कलहप्रियाः । वर्जन्त्यनुमोदन्ते ते वै नरकगामिनः ॥ ३ ९ ॥
अनन्यशरणस्त्रीणां ऋतुकालव्यतिक्रमम। य प्रकुर्वन्ति विद्वेषात्ते वे नरक गामिनः। ।
येऽपि गच्छन्ति कामान्या नरा नारी रजस्वलाम् । पर्वस्वप्यु दिवा श्राद्धे ते वे नरकगामिनः ॥
जो मन्द पुरुष भगवान् शिव , भगवती शक्ति , नारायण , सूर्य , गणेश , सद्गुरु और विद्वा - इनकी पूजा नहीं करते , वे नरकमें जाते हैं ॥ ३६
दासीको अपनी प्यावर आरोपित करनेसे ब्राह्मण अधीगतको जात होता है । और शूद्रामें संतान उत्पन्न करनेसे वह ब्राह्मणत्वसे ही च्युत हो जाता है । वह ब्रह्मानाधम कभी भी नमस्कार करने योग्य नहीं होता । जो मूर्ख ऐसे ब्राह्मण की पूजा करते हैं , वे नरकगानी होते हैं॥३०-२८
दूसरों के कलह से प्रसन्न होनेवाले जो मनुष्य ब्राह्मणों के कलह तथा गौ की लड़ाईको नहीं रुकवाते हैं ( ऐसा देखकर प्रसन्न होते हैं ) अथवा उसका समर्थन करते हैं , बढ़ावा देते हैं , वे अवश्य ही नरकमें जाते हैं ॥३ ९
जिसका कोई दूसरा शरण नहीं है , ऐसी पतिपरायणास्त्रीके ऋतुकालकी द्वेषवश उपेक्षा करनेवाले निश्चित ही नरकगामी होते हैं । ४०
जो कमान्ध पुरुष रजस्वला स्त्रीसे गमन करते हैं अथवा पर्व के दिनों ( अमावास्या , पूर्णिमा आदि ) -में , जल मे , दिनमें तथा श्राद्ध दिन कामुक होकर स्त्रीसंग करते हैं , वे नरकामी होते हैं । ४ ९
ये शारीर मलं वह्मौ प्रक्षिपन्ति जलेऽपि च। आरामे पथि गोष्ठे वा ते वै नरकगामिनः ॥ ४२
शस्त्राणां ये च कर्तारः शराणां धनुषां तथा । विक्रेतारशच ये तेषां ते वे नरकगामिनः ॥ ४५
चर्मविक्रयिणो वैश्याः केशविक्रेयकाः स्त्रियः । विविक्रषिणः सर्वे ते वै नरकगामिनः।
जो अपने शरीरके मलको आग , बल , उपवन , मार्ग अथवा गौशाला मे फेंकते हैं , वे निश्चय ही नरक मे जाते है ॥४२
जो हथियार बनानेवाले , बान और धनुषका निर्माण करनेवाले तथा इनका विक्रय करनेवाले हैं , वे नरकामी होते हैं ॥४३
चमड़ा बेचनेवाले वैश्य , केश ( योति ) का विक्रय करनेवाली स्त्रीयां तथा विष का विक्रय करनेवाली स्त्रीयाॅ ये सभी नरक में जाते हैं ॥४४
अनाथं नाउनुकम्पन्ति ये सतां द्वेषकारकाः । विनाऽपराधं दण्डन्ति ते वै नरकगामिनः ॥ ४५
आशया समनुप्राप्तान् ब्राह्मणानचिनो गृहे न भोजयन्ति पाकेऽपि ते वै नरकगामिनः ॥ ४६
सर्वभूतेष्वविश्वस्तास्तथा तेषु विनिर्दयाः ।सर्वभूतेषु जिह्या ये ते वै नरकगामिनः ॥ ४७
नियमान्समुपादायत ये पश्चादजितेन्द्रियाः। विग्लापयन्ति तान् भूयस्ते वै नरकगामिनः ॥ ४८
जो अनाथके ऊपर कृपा नहीं करते हैं , सत्पुरुषोंसे द्वेष करते हैं और निरपराधको दण्ड देते हैं , वे नरकगामी होते हैं ॥४५
आशा लगाकर घरपर आये हुए ब्राह्मणों और याचकोंको पाकसम्पन्न ( भोजनके बने ) रहनेपर भी जो भोजन नहीं कराते , वे निश्चय ही नरक प्राप्त करनेवाले होते हैं ॥ ४६
जो सभी प्राणियोंमें विश्वास नहीं करते और उनपर दया नहीं करते तथा जो सभी प्राणियोंके प्रति कुटिलताका व्यवहार करते हैं , ये निश्चय ही नरकगामी होते हैं ॥४७
जो अजितेन्द्रिय पुरुष नियमोंको स्वीकार करके बादमें उन्हें त्याग देते हैं , वे नरकगामी होते हैं ॥ ४८
अध्यात्मविद्यादातारं नैव मन्यन्ति ये गुरुम् तथा पुराणवक्तारं ते वै नरकगामिनः ॥ ४ ९
मित्रद्रोहकरा ये प्रीतिच्छेदकराश्च ये । आशाच्छेदकरा ये च ते वै नरकगामिनः ॥ ५०
विवाहं देवयात्रां च तीर्थसार्थान्विलुम्पति । स वसेन्नरके घोरे तस्मान्त्रावर्तनं पुनः ॥ ५१
जो अध्यात्मविद्या प्रदान करनेवाले गुरुको नहीं मानते और जो पुराणवक्ताको नहीं मानते , वे नरकमें जाते हैं ॥ ४ ९
जो व्यक्ति मित्रसे द्रोह करते हैं , जो व्यक्तियोंकी आपसी प्रीतिका भेदन करते हैं तथा जो दूसरेकी आशा नष्ट करते हैं , वे निश्चय हो नरकमें जाते हैं ॥ ५०
विवाहको भङ्ग करनेवाला , देवयात्रामें विन करनेवाला तथा तीर्थयात्रियों को लूटनेवाला घोर नरकमें वास करता है और वहाँसे उसका पुनरावर्तन नहीं होता ॥५१
अग्नि दद्यान्महापापी गृहे ग्रामे तथा वने । स नीतो यमदूतैश्च वह्निकुण्डेषु पच्यते ॥ ५२
अग्निना दग्धगात्रोऽसौ यदा छायां प्रयाचते ।नीयते च तदा दूतैरसिपत्रवनान्तरे ॥ ५३
खड्गतीक्ष्णैश्च तत्पत्रैर्गात्रच्छेदो यदा भवेद । तदोचुः शीतलच्छाये सुखनिद्रां कुरुष्व भो ॥
यदा जो महापापी घर , गाँव तथा जंगलमें आग लगाता है , यमदूत उसे ले जाकर अग्निकुण्डोंमें पकाते हैं ॥५२
इस अग्रिसे जले हुए अङ्गवाला वह पापी जब छायाकी याचना करता है तो यमदूत उसे असिपत्र नामक वनमें ले जाते हैं ॥५३
जहाँ तलवारके समान तीक्ष्ण पत्तोंसे उसके अङ्ग जब कट जाते हैं , तब यमदूत उससे कहते हैं - रे पापी शीतल छाया में सुखकी नींद सो ॥ ५४
पानीयं पातुमिच्छन्वै तृषार्तो यदि याचते । पानार्ध तैलमत्युष्णं तदा दूतैः प्रदीयते ॥ ५५
पियतां भुज्यतां पानमन्त्रमूचुस्तदेति ते । पीतमात्रेण तेनैव दग्धात्रा निपतन्ति ते ॥५६ ॥
कथञ्चित्पुनरुत्थाय प्रलपन्ति सुदीनवत् । विवशा उच्चसन्तश्च ते वक्तुमपि नाशकन् ॥ ५७ ॥
जब वह प्याससे व्याकुल होकर जल पीनेको हच्छासे पानी माँगता है तो दूतोंके द्वारा उसे खौलता हुआ तेल पीनेके लिये दिया जाता है ॥५५ ॥ ' पानी पीयो और अन्न खाओ'- ऐसा उस समय उनके द्वारा कहा जाता है ।
उस अति उष्ण तेलके पीते ही उनकी अति जल जाती हैं और वे गिर पड़ते हैं ॥५६
किसी प्रकार पुनः उठक अत्यन्त दोनकी भाँति प्रलाप करते हैं । विवश होकर ऊर्ध्व श्वास लेते हुए वे कुछ कहनेमें भी समर्थ नहीं होते ॥ ५७
इत्येवं बहुशस्तार्क्ष्य यातनाः पापिनां स्मृताः । किमेतैर्विस्तरात्प्रोक्तैः सर्वशास्त्रेषु भाषितैः ॥ ५८
एवं वै क्लिश्यमानास्ते नरा नार्यः सहस्रशः पच्यन्ते नरके घोरे यावदा भूतसम्लवम् ॥ ५ ९
तस्याक्षर्य फलं भुक्त्वा तत्रैवोत्पद्यते पुनः यमाज्ञया महीं प्राप्य भवन्ति स्थावरादयः ॥ ३०
हे तार्य इस प्रकारकी पापियोंकी बहुत सी यातनाएँ बतायी गयी हैं । विस्तारपूर्वक इन्हें कहनेकी क्या आवश्यकता ? इनके सम्बन्ध में सभी शास्त्रों में कहा गया है ॥ ५८
इस प्रकार हजारों नर - नारी नारकीय यातनाको भोगते हुए प्रलयपर्यन्त घोर नरकोंमें पकते रहते हैं ॥ ५ ९
उस पापका अक्षय फल भोगकर पुनः वहीं पैदा होते है और यमकी आज्ञासे पृथ्वीपर आकर स्थावर आदि योनियोंको प्राप्त करते हैं । ६०
वृक्षगुल्मलतावालीगिरय कीटा पशवचैव तृणानि च स्थावरा इति विख्याता महामोहतमावृताः ॥ ६१
पक्षिणक्ष जलेचराः । चतुरशीतिलक्षेषु कथिता देवयोनयः ॥ ६२
वृक्ष , गुल्म , लता , वल्ली , गिरि ( पर्वत ) तथा तृण आदि ये स्थावर योनियाँ कही गयी हैं ; ये अत्यन्त मोहसे आवृत है ॥ ६१
कीट , पशु - पक्षी , जलचर तथा देव - इन योनियोंको मिलाकर चौरासी लाख योनियाँ कही गयी है ॥ २
एताः सर्वाः परिभ्रम्य ततो यान्ति मनुष्यताम् । मानुषेऽपि श्वपाकेषु जायन्ते नरकागताः । तत्रापि पापचिह्नस्ते भवन्ति बहुदुःखिताः ।। ६३
गलत्कुष्ठाश्च जन्मान्धा महारोगसमाकुलाः कुलाचार। भवन्त्येवं नरा नार्यः पापचिह्नोपलक्षिताः ॥ ६४
इति वरुडपुराणे सारे नरकप्रदपापचिह्ननिकपणं नाम ॥
गलत्कुष्ठाश्च जन्मान्धा इन सभी योनियोंमें घूमते हुए जीव मनुष्ययोनि प्राप्त करते हैं और मनुष्ययोनिमें भी नरकसे आये व्यक्ति चाण्डालके घरमें जन्म लेते हैं तथा उसमें भी ( कुष्ठ आदि ) पापचिह्नोंसे वे बहुत दुःखी रहते हैं । किसीको गलित कुष्ठ हो जाता है , कोई जन्मसे अन्धे होते हैं और कोई महारोगसे व्यथित होते हैं । इस प्रकार पुरुष और स्वोमें पापके चिह्न दिखायी पड़ते हैं।६३-६४
इस प्रकार गरुडपुराण सारोद्धार के अंतर्गत सारोद्धार में नरकप्रदपापचिन्हनारूपण नामक चौथा अध्याय पुरा हुआ।
हरिशरणम हरिशरणम हरिशरणम
भूपाल मिश्र
सनातन वैदिक धर्म
Bhupalmishra108.blogspot.com