Yato Dharmah tato.Jayah यतो धर्मः ततो जयः हिंदु राजा की अनूठी कहानी

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                  वचन  एक हिंदु राजा की कहानी 



एक धर्मात्मा राजा था । वे वचन के बङे पक्के थे । जो मुंह से निकल जाता था उसे पुरा करते थे । दीन दुखियों की सदा मदद करते थे । सनातन धर्म मे पुरी निष्ठावान थे । प्रजा कैसे सुखी रहे ,इसके लिए मेहनत करते थे । उनका हृदय इतना विशाल था कि वे किसी को दुखी नही देखना चाहते थे ।वैसे मनुष्य अपने प्रारब्ध को भोगता है । जीव के सुख-दुख का कारण तो अपने कर्म का फल है । लेकिन राजा दूसरे के दुःख को अपना दुःख समझकर दुर करने का प्रयास करते थे । 

एक बार राजा के मन मे ख्याल आया कि ,क्यों न एक हाट लगाया जाए। जिसमे लोग अपने सामान को बेचकर गुजर बसर करे। हाट लग जाने से गांव के बेरोजगार को रोजगार मिल जाएगा।  जरूरतमंद अपने सामान को लाकर बेच सकेंगे।  साथ ही उसमें हटिया एसी व्यवस्था होगी कि ,यदि किसी का कोई सामान नही बिका तो राज्यकोष से शाम के समय बचे हुए सामान को खरीद लिया जाएगा ।

राजा मंत्री के साथ विचार विमर्श कर घोषणा करवा दिया कि अमुक दिन को यहां हाट लगाया जाएगा। लोग अपने सामान लेकर आएं और खरीद विक्री करें । यदि किसी का सामान नही बिका या फिर बच गया तो शाम के समय राजकर्मचारी द्वारा खरीद लिया जाएगा।  

लोग आने लगे ,हटिया लगने लगा ।राजा के सियाही बचे हुए सामान को शाम के समय खरीदने लगे ।  जब  सिपाही सामान लेकर आता तो स्वयं जाकर सिपाहियों पूछते ," आज सबका सामान खरीद लिया कि नही ?" सिपाही कहते हां सबका बचा हुआ सामान खरीद चुके है । 

फिर भी यदि किसी कोई सामान छुट गया तो बताओ । नही नही हमलोगो सबका सामान खरीद लिए है ।कोई नही छुटा है । आप निश्चिन्त रहे । राजा प्रत्येक सिपाही को बार-बार पूछताछ करता । तबतक पूछताछ करता जबतक राजा को विश्वास नही हो जाता था । विनती पूर्वक पूछताछ करता। देखो किसी का कोई सामान भुलचुक से छूट गया हो तो बता दो ।कोई दंड नही होगा।  और प्रत्येक दिन पूछताछ करता। पुरी तरह आश्वस्त होकर वह अपने दुसरे काम करता था ।

उसी राज्य मे एक गरीब ब्राह्मण रहता था । उसकी पत्नी ने उससे कहा कि देखो अब तो हटिया लगने लगा है ।राजा साहब का आदेश है ।जो कोई सामान बच जाएगा सिपाही उसे खरीद ही लेगा। तो भूखे मरने की क्या जरुरत है । तुम भी कोई सामान लेकर जाओ कोई नही भी खरीदेगा राजा खरीद लेगा। 

ब्राह्मण के पास बेचने के लिए कुछ भी नही था । क्या लेकर जाए । दुखी ब्राह्मणी बार-बार पति को उलाहना देती थी ।इतना धर्मात्मा राजा के राज मे भी हमलोग दुखी है ! अरे ,वहाँ तो जो ले जाओगे, वो तो बिक ही जाएगा। फिर क्या सोच रहे हो ।इतने बडे संसार मे कुछ भी नही दिखाई देता है । इस प्रकार कई तरह के ताने बार-बार मारती रहती थी ।

ब्राह्मण ने सोचा बात सच है ।जो लेकर जाऐंगे बिक ही जाएगा। बहुत सोच समझकर मिट्टी लाया।  मिट्ट से एक मुर्ति बनाया। वह मुर्ति भी बनाया तो दरिद्र नारायण का ।उसी को लेकर वह चला गया ।  हटिया मे बैठ गया ।लोग आते पुछते पंडित जी क्या है ? मुर्ति है ! कौन सा भगवान की मुर्त है ? ये दरिद्र नारायण की मूर्ति है । अरे  , इ दरिद्र नारायण का मुर्ति कौन खरीदे? 

लोग नाम सुनकर ही भाग जाते थे।  शाम हो  गया ।किसी ने मुर्ति नही खरीदी। 

राजा के सिपाही आए, क्या है पंडित जी ?  

मुर्ति  ! किसकी मुर्ति? 

दरिद्र नारायण की मूर्ति है । 

सिपाही भी सुनकर सकपका गया।  दरिद्र नारायण! की मूर्ति कौन खरीदे। 

सिपाही मूर्ति छोड़कर भाग गया  नही खरीदा। 

राजा साहब हरेक शाम को आते 

। अपने सिपाही से पूछताछ करता।  देखो किसी का कोई सामान छुट  तो नही गया ,? 

सिपाही से आज पुछा,  किसी का कोई सामान छुटा तो नही ?

सिपाही बोल  दिया नही सब सामान खरीद लिए है ।

लेकिन राजा अपने आदत के अनुसार बार-बार पूछताछ करता था ।तबतक पूछताछ करता जबतक पूरी तरह तसल्ली नही हो जाता था।  

कई बार घुमा-फिराकर  पूछताछ करता इतना ही पूछताछ करता देखो किसी का किसी तरह के कोई सामान छुटा तो नही। मै विनती करता हुं, अगर एसा है तो बताओ कोई दंड नही है ।

राजा के बार-बार विनम्रतापूर्वक पूछने पर फिर कौन झूठ बोल सकता है । 

आज एक सिपाही बोल ही दिया,  हां महाराज!, आज एक ब्राह्मण का एक ऐसा सामान था जिसे कोई नही खरीदा । और हमने भी नही खरीदा।  ब्राह्मण वह सामान वापस लेकर गया है । 

राजा  ,क्या सामान था?  तुमने क्यों नही खरीदा? 

महराज वह मिट्टी का बना दरिद्र नारायण का मूर्ति था । हम कैसे खरीदते वह मूर्ति ? 

तुमने अच्छा नही किया।  बैलगाड़ी पर साल भर का खर्च लादकर ले जाओ और उससे वह मूर्ति ले आओ। 

राजा आदेश हुआ। तुरंत बैलगाड़ी पर सामान लेकर गया और मूर्ति लेकर सिपाही आए । 

राजा आश्वस्त हो गया। अपने दुसरे काम मे लग गए। 

इधर घर मे खा पीकर सभी सो गए।  राजा को अभी नींद नही आई थी। घर मे दरिद्र नारायण की मुर्ति आने से घर के सभी देवता रूष्ट हो गए।  भगवान विष्णु ने कहा, अब यहाँ रहना ठीक नही है । अब तो दरिद्र नारायण आ गए। अब हमलोगों का पुजा कैसे होगा? गरीब कैसे पूजा करेगा? पुजा के लिए धन की आवश्यक्ता होती है । विष्णु भगवान उठकर चल दिए।  

राजा ने टोका, भगवन!कहां चल दिए? 

भगवान बोले अब तो तुम्हारे यहाँ दरिद्र नारायण आ गया है ।अब मेरी पुजा कौन करेगा? इसलिए जाना पडेगा। 

राजा ने कहा जैसी मर्जी आपकी। आप स्वतंत्र है प्रभु। 

उसके बाद माता लक्ष्मी चलने लगी। राजा उनको भी नही रोका। फिर माता पार्वती भोलेनाथ निकले। राजा ने पूछा आप कहाँ? भोलेनाथ ने वही ऊतर।  

ठीक है ।राजा ने जबाव दिया ।

फिर  घर के तमाम देवी देवता निकले ।राजा सबके साथ उतना ही प्रश्न करता जा रहा है ।सभी ने वही जबाव दिया अब तो घर मे दरिद्र नारायण आ गए है । तो हमलोग कैसे रहे ? अब जाना ही होगा। 

राजा ने  किसी को रूकने का प्रयास भी नही किया। 

अभी सबसे अंत मे , घर्मराज महाराज निकले। जाना लगे। राजा से नही रहा गया। राजा हाथ पकड़कर कहा आप कहाँ जा रहे है ? 

धर्मराज ने कहा अब तो सबके सब निकल गए है मै कैसे रह सकता हूं ? 

राजा ने कहा प्रभु मैने कौन पाप किया है ? जो आप जा रहे है ?

मैने अपने धर्म की रक्षा की है। मै वचन दिया था ,कि हाट मे जो सामान नही बिकेगा मै खरीद लूंगा। और मै खरीद लिया फिर आप कैसे जा सकते है ?  आप तो स्वयं धर्मराज है ।फिर भी जा रहे है ! कमसे कम आय तो मेरा साथ न छोडे। सबके जाने के लिए नही रोका। लेकिन आप  !

धर्मराज सकपका गए।  बात सही है । रूक गए। वापस अपने स्थान पर फिर से बैठ गए। 

धर्मराज के वापस होने सभी देवी देवता लोट गए। 

राजा सबको एक साथ दर्शन कर कृत कृत हो चुका था ।

यतो धर्मः ततो जयः 

हरिशरणम हरिशरणम हरिशरणम 

 भूपाल मिश्र 

सनातन वैदिक धर्म 

Bhupalmishra108blogspot.com 







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