एकता मे बल है
बात पुराने जमाने की है। उस समय आज के जैसा सुविधा नही था । लोग जंगल मे रहते थे । पानी के नदी तालाब झरने पर निर्भर थे। कहीं घनी आवादी वाले जगह पर कुआं खोदकर पानी की व्यवस्था की जाती थी । लोग यत्र-तत्र अपनी मर्जी से रहते थे । पढ़ाई के लिए गुरूकुल था। गर्मी का समय था । गुरुजी अपने कुछ शिष्यों के साथ यात्रा कर रहे थे । कुछ दुर चलने के बाद एक लाश पर नजर पड़ी। वह एक आदमी मरा परा था। उसके बगल मे एक कुदाल रखा था । और एक गढ्ढा खोदा हुआ था।
सबने यह दृश्य देखा और आगे निकल गए। कुछ दुर के बाद फिर वैसा ही दृश्य। एक आदमी मरा पङा है ।एक गढ्ढा खोदा हुआ है ।एक कुदाल रखा है । फिर कुछ दूरी पर वही दृश्य।
सभी ने देखा और आगे निकल गए। कुछ दुरी पर फिर वही दृश्य। इस तरह के कई दृश्य गुरुदेव के साथ बच्चों ने देखा । एक बच्चे से नही रहा गया। हिम्मत करके गुरुदेव से पुछा, यह क्या है ? गुरुदेव । सबका यही हाल क्यों है ?
गुरुदेव ने जबाव दिया, ये लोग प्यासे थे। पानी पीने के लिए गढ्ढा खोद रहे थे । गढ्ढा खोदते खोदते प्प्यास से मृत्यु हो गई।समय पर पानी नही मिला । तङप तङपकर मृत्यु हो गई। शिष्य बोला ये तो बङा जुल्म हुआ है । अकाल मृत्यु हो गई। गुरुदेव ने कहा, हां यह तो ठीक है । अकाल मृत्य हो गई है ।लेकिन ये सभी मुर्ख थे !
शिष्य ने पूछा, वो कैसे ? गुरुदेव ने कहा, ये सबके सब अलग अलग गढ्ढा खोद रहे थे। इसलिए गढ्ढा नही खोद पाए और प्यासे मर गए। यदि ये सभी मिलकर गढ्ढा खोदते तो गढ्ढा भी तैयार हो जाता और पानी भी मिल जाता कोई प्यासे नही मरते। गढ्ढा तैयार हो जाता तो और भी लोग पानी पी सकते थे। इन लोगों ने अलग-अलग गढ्ढा खोदने की भूल की ,जिसके कारण प्यासे मर गए।
गुरुदेव ने आगे कहा , इस संसार मे मिलजुल कर कार्य करने से बङा से बङा दिखने वाला काम भी सहज हो जाता है । इसलिए। हमें पारिवारिक शक्ति का , सामुहिक शक्ति का सदुपयोग कर सर्वदा आगे बढना चाहिए। इन शक्ति का दुरुपयोग नही करना चाहिए। एकता मे अथाह बल है ।
गदहा और ऊल्लु की कहानी
धोबी का एक गदहा था। एक बार वह रात मे अपने मालिक का घर नही जा सका। चरते चरते अंधेरा हो गया। ऐसे मे घर का रास्ता भूल सकता था। एक विशाल पैङ के नीचे बैठ गया । शुबह घर चले जाएंगे। रात मे जाकर करना ही क्या है ।वृक्ष के नीचे लेट कर आराम करने लगा।
रात्रि के समय उस वृक्ष पर और पक्षी आराम कर रहे थे । कुछ देर बाद वहां एक ऊल्लु आया। ऊल्लु ने गदहा को देखा , उसने गदहे से पुछा भाई तुम यहां क्यों बैठे हो ?
गदहे ने कहा, भाई रात हो गई है । अंधेरे मे कहां जाना। इसलिए आज रात भर यही आराम कर लेते है ।शुबह चले जाएंगे।
ऊल्लु बोला, रात हुई तो क्या हुआ? हमे तो रात मे भी दिखता है ।
गदहे ने कहा, तुम्हे रात दिखता है तो मुझे क्या मतलब ?
ऊल्लु बोला हम तुम्हे मालिक के घर छोड़ देंगे।
गदहे ने कहा, हमे तुम मालिक के घर क्यों छोङोगे?हम रात मे मालिक के घर जाकर क्या करेंगे?शुबह ही कोई काम होगा सो हम शुबह पहुंच जाएंगे।
ऊल्लु बोला, अरे शुबह क्यों हम अभी पहुंचा देंगे। हमको दिखाई देता है ।
गदहे ने कहा ,तुम्हे रात को दिखाई देता है अच्छी बात है ।लेकिन हम दिन भर मालिक का बोझा ढोते ढोते थक गए है । क्यों न हम यहीं आराम कर लें ।
ऊल्लु गदहे को समझाने लगा। कहने लगा देखो हमको रात को दिखाई देता है । हम तुम्हारे पीठपर बैठकर रास्ता दिखाते रहेंगे। कहीं भी गढ्ढा आए या कोई मोङ आए हर जगह तुम्हे रास्ता दिखा देगें। तुम आराम से चलना। मेरा वजन भी थोडा ही है । तुम्हे कोई फर्क भी नही पडेगा। तुम चिंता मत करो। आज से मै तुम्हरा मित्र हूं। चलो अभी तुमहे रास्ता दिखाता हुं।
गदहा तो आखिर गदहा ही ठहरा। ऊल्लु ने इतना आग्रह किया कि गदहा मजबूर हो गया। ऊल्लु के जिद्द के आगे गदहे का कोई बहाना नही चला। ऊल्लु बारंबार कहता कि मुझे रात को दिखाई देता है ।
आखिरकार गदहे के पीठपर ऊल्लु सवार हो ही गया। रास्त मे कहीं कोई गढ्ढा दिखाई देता तो ऊल्लु बता देता था। दोनो चल रहे है । बार-बार ऊल्लु कहता मै कहा न मुझे रात को दिखाई देता है । तुम्हे तो विश्वास ही नही हो रहा था ।अब तो विश्वास हो गया ।
गदहा बेचारा हां मे हां मिलाता चल रहा था । जहां कहीं भी कोई गढ्ढा, कोई मोङ आता तो ऊल्लु बता देता था।
रात भर दोनो चलता रहा। ऊल्लु को गदहे के मालिक का घर मालूम नही था । केवल रात को दिखाई देता था। गदहा को कहां जाना है ? मालिक का घर कहां है ?ऊल्लु को क्या पता?उसे तो केवल दिखाई देता था।
चलते चलते रात बीतने लगी। शुबह हो रहा था । ऊल्लु बोला, अब तो हमे दिखाई नही देता है । गदहे ने कहा, रात भर चलते चलते मैं बहुत थक चुका हूं। न सोने के कारण नींद
से मुझे भी कुछ नही दिखाई देता है । आगे मे एक नदी थी । तेज धार अथाह पानी दोनो की आँखों की रोशनी खत्म हो चुकी थी ।गदहा के पीठपर बैठा ऊल्लु उसी नदी मे घुस गए। देखते ही देखते दोनो नदी के तेज धार अथाह पानी मे समा गया ।
हर हर महादेव मित्र
भूपाल मिश्र
सनातन वैदिक धर्म
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