Sanatan vedic dharma, short introduction

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         सनातन हिंदु धर्म कर्म 

     


                     एक संक्षिप्त परिचय 


एवम अनेकानेक पंथ। धर्म को चार पैर है  । (1)  सत्य  (2) दया  (3)  दान  (4)  शौच । चारो चरण मे से केवल एक चरण ही प्रधान रूप से किसी भाग्यशाली मनुष्य के पास रहता है ।जैसे महाराज हरिश्चन्द्र के पास केवल सत्य ही प्रधान रूप से प्रतिष्ठित था। अर्थात किसी भी एक पैर का आश्रय लेकर मानव महामानव हो जाता है ।1:यदि आप सत्य को मानते है । सत्य  की सत्ता को स्वीकार करते है तो  आप  हिंदु है । सत्यम शिवम सुन्दरम  ।2 यदि आपके भीतर जीव मात्र के प्रति दया है ।तो आप धर्मात्मा है ।3 यदि आप सत्तपात्र को समय-समय पर, यज्ञ आदि शुभ कर्म के लिए दान करते है ,तो  आप धर्मात्मा है ।अर्थात दान की सत्ता को स्वीकार करते है ।4  शौचाचार जैसे स्नान, नख बाल , मल मुत्र  त्याग के बाद हाथ पैर की शुद्धि ,खान पान की शुद्धि आदि क्रिया । भगवन नाम जप द्वारा अंदर  की शुद्धि करना ,अभक्ष  भोजन का त्याग,  कुसंग का त्याग, आदि नियमो पालन करना , शौचाचार  है ।इन चारो पैरो के प्रति श्रद्धा वान होने से ,शास्त्र विहित कर्म करने से ही कोई हिंदु हो सकता है । धर्म मे पूर्ण आस्थान्वित होना ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। हमारे हिंदु धर्म मे सभी कर्मो के लिए निर्देश दिया गया है ।यथा- वर्णाश्रम धर्म, जाति धर्म, माता-पिता का धर्म  ,पुत्र-पौत्रादि का धर्म, स्त्री धर्म, पति-पत्नी का धर्म, हरेक रिसते नाते का धर्म एवम उनके प्रति कर्तव्य आदि निर्देश ही सनातन वैदिक धर्म या हिंदु धर्म है । धर्मानुकूल चरित्र निर्माण, धर्मानुकूल जीवन यापन धर्मानुसार पुरूषार्थ प्राप्ति करना । अर्थात पूर्ण सदाचार, पूर्ण शिष्टाचार, पूर्ण जवाबदेह होना चाहिए। तब हम पूर्ण ब्रह्म को प्राप्त कर सकते है । मै इस ब्लॉग मे दिव्य महापुरुषो के चरित्र के माध्यम से सनातन वैदिक धर्म या हिंदु धर्म को जानने का प्रयास किया है । सदाचार से शुन्य ब्राह्मण को चांडाल कहा गया है । श्री गीतांजी मे भगवान श्रीकृष्ण स्पष्ट शब्दो मे कहा है -स्व धर्मै निधने श्रेय ।पर धर्म भयावह ।।कलयुग केवल नाम अधारा। सुमरि सुमरि नर उतरहि पारा ।।केवल राम,राम कहें । चाहे जहां रहें ।। अन्य पंथ क्या है ? इतने सारे पंथ जो संसार मे व्याप्त है ।उसके बारे मे हमारे पुराण का क्या कहना है ?  श्रीमदभागवत महापुराण के पृथू चरित्र मे आया है  कि जब महाराज पृथु अपना सौ वा यज्ञ कर रहे थे ,तो श्वर्गाधिपति इन्द ने उनका घोङा चूरा लिया ।महाराज के पुत्रों ने जब घोङे को  खोजना आरंभ किया तो देखा कि इन्द्र घोङे को ले जा रहे है ।महाराज के पुत्र जब उनसे घोङे छीनने का प्रयास किया तो ,इन्द्र ने अपना रुप बदल लिया ।जो किसी अच्छे आचरण वाला स्वरूप था उस स्वरूप मे उनसे  लङाई करना उचित नही था ।फिर जब इन्द्र को पकङने की कोशिश किया तो ,फिर इन्द्र ने नया रूप धारण कर लिया ।यह रूप भी उनका अच्छे आचरण वाला ही था । इसमे भी इन्द्र को मारना उचित नही था ।फिर पृथू पुत्र पकङने की कोशिश किया ।पुनः इन्द्र नये रूप धारण कर लिए। यह नया रूप की बार धारण किए।  ब्रह्म जी ने देखा तो वे सोचने लगे कि इन्द्र के इस तरह के नये नये रूप धारण से भविष्य मे अनर्थ होने वाला है ।अनर्थ यह कि महाराज इन्द्र ने जो यह सात्विक पुरुष का रूप धारण किया है ।वह भविष्य मे पंथ बन जाएगा ।जो देखने मे धार्मिक ही  होगा ,लेकिन वास्तव मे अधर्म ही होगा । ब्रह्म जी आकर इन्द्र और महाराज पृथू को समझकर यज्ञ का घोङा पृथू महाराज को वापस कर दिए और इस तरह से महाराज पृथू का सौ वां अश्वमेध यज्ञ पुरा हुआ । महाराज इन्द्र उस समय जितने वेष धारण किए  कालांतर मे उतने पंथों की उत्पति हो गई है ।जो देखने मे धर्म जैसा लगता है ।वास्तव मे अधर्म ही है । इन पंथों के अनुयायी आज समस्त जीवों के लिए अभिशाप बना हुआ है ।।आप प्रत्यक्ष देख रहे है ।इन्ही पंथों के लोगों द्वारा ही सारे अनर्थकारी कार्य हो रहे है ।और भविष्य मे भी होते रहेगा। 



दुनिया के महान महापुरुष के दिव्य जीवन यापन की विशिष्ट कहानी को संकलित करने की कोशिश है ।जो प्रामाणिक है ।हिंदु धर्म के महानायक का चरित्र चित्रण ही वास्तविक रूप से सनातन वैदिक धर्म है । जिन्होने अपनी जीवन को धर्मानुकूल बनाकर आलौकिक चमत्कार का प्रदर्शन किया है । हमे तो सिर्फ उनका अनुसरण ही करना है । क्योकि शास्त्र मत है -"येन पंथा गतो महाजना " अर्थात महापुरुष के मार्ग पर ही चलना चाहिए। हिंदु धर्म के महानता का वर्णन संभव नही है । किसी पंथ मे एक पुस्तक है । यहां तो पुस्तक ही पुस्तक है । अर्थात विराट हिंदु सनातन धर्म का आदि अंत नही है ।आकाश और पाताल के सभी रहस्य सनातन वैदिक धर्म मे ही समाहित है ।



क्रमश 



Bhupalmishra108.blogspot.com. 







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