धर्म के मर्म को समझना कठिन है ?
कठिन इसलिए है कि संसार मे इतनी वस्तुऐं है कि हम फैसला नही कर पाते ,कि हमे किन किन वस्तुओं की आवश्यकता है ।हमें क्या चाहिए, क्या नही चाहिए। मन वायु तत्व है । जिसके कारण स्थिर नही रह सकता है ।यह मन चंचल है ।यानि चलता ही रहता है । जो चीज देखे ऊसके पीछे पङ जाता है ।हमलोग इनके पीछे पङे रहते रहते है
यही कारण है कि किसी भी चीज को समझने का समय कम मिलता है । जिसके कारण साधारण सा काम भी पहाङ सा दिखने लगता है । फिर उस पहाड पर चढना तो कठीन हो ही जाता है ।
हमें तो आसान रास्ता चाहिए। तुरन्त मुनाफा चाहिए। बिना योग्यता पात्रता के ही भरपूर सुख शुचिता, लोकप्रियता, ऐशो-आराम चाहिए। इसके चक्कर मे हम पथ भ्रष्ट होकर मनमाने आहार-व्यावहार क,ने लगते है । जब तक हम धर्म पर टीककर उनके अनुरूप आचरण नही करेंगे, तबतक हम उसके मर्म को कैसे समझ सकते है । फिर इस प्रकिया मे समय भी लगेगा । इतना समय इस कलिकाल मे है नही ।काम तो लाईन लगाकर खङा है ।रात दिन काम करते रहे ,तो भी खत्म होने का नाम नही लेता है । काम के इस भीङ मे हम खो जाते है । धर्म के लिए निष्काम होना चाहिए। जो संभव नही है ।लेकिन निष्काम की सहयता लेने लगे तो कुछ कुछ बात बनने लगती है । थोड़ी देर के लिए ही सही निष्काम का सहयोग लीजिए।
क्यों लिजिए ?
अब हम एक नई बात, जो कि पौराणिक ही है ।आप पता कर सकते है । काल यानि समय का भी विराट स्वरूप है । जैसे दिन-रात, सप्ताह, पक्ष, शुक्ल एवं कृष्ण, महीना ,ऋतु, अयन, (उत्तरायण और दक्षिणायन) वर्ष। फिर युगादि। मन्वन्तर आदि जो कि विस्तृत है। अभी हम युग के बारे मे जानते है। चार युग है । 1 सतयुग- इसका समय लगभग साढे सत्रह लाख वर्ष का है ।इसमे धर्म चारो चरण से पृथ्वीपर रहता है । सत्य, दया,दान और शौच यही धर्म के चार चरण (पैर ) है। मनुष्य की आयु इस युग मे एक लाख वर्ष की होती है। मनुष्य अपने हाथ से इक्कीस हाथ का होता है । वर्णाश्रमधर्म के पालन मे सभी लगे रहते है। मनुष्य हजारों हजार वर्ष तपस्या करते है ।
2 त्रेता - इसका समय लगभग चौदह लाख वर्ष का होता है ।मनुष्य अपने हाथ से चौदह हाथ के होते है । धर्म अपने तीन चरण से रहते है ।इसमे मनुष्य की आयु दस हजार वर्ष की होती है ।और इसमे हजार हजार वर्ष तक चलने वाला यज्ञादि कर्म होते है । क्योकि ऊम्र कम होने से तपस्या नही हो पाता है ।
3 द्वापर- इसकी आयु लगभग साढे सात लाख वर्ष की है। मनुष्य की आयु एक हजार वर्ष की होती है। मनुष्य अपने हाथ से सात हाथ के होते है। धर्म अपने दो चरणो से रहते है । इस युग मे मनुषय बङे बङे अनुष्ठान करते है ।कयोकि समय के अभाव मे तपस्या संभव नही है ।हजार वर्षोंतक चलने वाला यज्ञ भी असंभव है ।तो मनुष्य अपने इष्टदेव की प्रसन्नता के लिए अनुष्ठान, पूजा पाठ मे संलग्न रहते है ।
4 कलियुग- इसकी लगभग चार लाख बत्तीस हजार वर्ष की है ।मनुष्य की आयु सौ वर्षों की होती है ।मनुष्य अपने हाथ से साढे तीन हाथ का होता है । धर्म अपने एक चरण से रहते है । कलियुग के अनगिनत अवगुण है ।लेकिन इसमे कुछेक महत्वपूर्ण गुण भी है ।
हमने देखा कि सतयुग के लोग हजार हजार वर्षोंतक तपस्या करते है ।त्रेतायुग के मनुष्य हजार हजार वर्षोंतक चलने वाला यज्ञ करते है ।द्वापर के लोग बङे बङे अनुष्ठान करते है । इन सबके पीछे का राज यही था कि कलियुग मे जन्म हो।
जी ,हां यही सच है । कलिकाल मे जन्म क्यों लेना चाहते है ?
इसलिए कि कलिकाल मे भगवान सुलभ है । जी, हां थोडा थोडा समय देने से अनुभूतियाँ होने लगती है ।एक घड़ी, आधो घङी आधो मे पुनिआध। तुलसी संगत साधु के हङहि कोटि अपराध। ।
उदाहरण-आप हजारों साधु संत के जीवन चरित्र प्रमाण है ।
ये है कलिकाल की महिमा।
मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि आप भी वही तो नही ? जांच लिजिए,,परख लिजिए। अपने बाल बच्चे के लिए, अपने परिवार के लिए, अरे, अपने देश के लिए, कभी कभी तो हम दुसरे के लिए भी न्यौछावर हो जाते है । फिर अपने लिए कुछ समय राम राम राम जरुर करें ।
कलियुग केवल नाम अधारा, सुमरि सुमरि ऊतरहिं पारा ।।
आप भी जल्द ही धर्म के मर्म को समझ जाएंगे।
धर्म के मर्म -
विप्र,धेनु,सूर, संत हित। लिन्ह मनुज अवतार।
आपक दासानुदास
हरिशरणम हरिशरणम हरिशरणम
BHOOPAL MISHRA
Sanatan vedic dharma karma
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