Sariramdas ji,सारीरामदास जी महाराज भारतीय इतिहास के महापुरुष

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                         श्रीसारीरामदास जी महाराज 



श्रीसारीरामदासजी महाराज श्रीअनन्तानन्दाचार्यजी महाराजके शिष्य थे । आप परम वैष्णव सन्त थे और भगवद्धर्मक प्रचारार्थ तथा भगवद् - विमुखोंको भक्तिमार्गपर लानेके उद्देश्यसे निरन्तर विचरण करते रहते थे । एक बारकी बात है , आप विचरण करते हुए एक ऐसे ग्राममें पहुँच गये , जहाँके लोग वैष्णवद्वेषी और भक्तजन - विरोधी थे । श्रीरामदासजीने एक गृहस्थका द्वार खटखटाया और ' जय श्रीसीताराम'का उद्घोष किया । उनकी आवाज सुनकर गृहस्वामी बाहर निकला और उन्हें देखते ही कुवाक्यों - दुर्वचनोंकी बौछार कर दी , परंतु सन्तप्रकृति श्रीरामदासजी शान्त बने खड़े ही रहे । साधुकी साधुता भी दुष्टके क्रोधको बढ़ानेवाली ही होती है , अतः गृहस्वामी उनकी शान्ति देखकर क्रोधसे पागल हो गया और धक्के देकर उन्हें द्वार बाहर कर दिया । इतना ही नहीं , चेतावनी देते हुए बोला- अगर दुबारा इस गाँवमें दिखायी दिये तो तुम्हारी खैर नहीं ।

 श्रीरामदासजीके मनपर उसकी बातों और उसके कृत्योंका कोई प्रभाव नहीं पड़ा , वे निर्विकार ही रहे और शान्तभावसे ग्रामसे बाहर जाकर नदीके किनारे बैठकर भगवान्‌का भजन करने लगे । सन्त तो साक्षात् करुणाविग्रह ही होते हैं , उनका कार्य ही भूले - भटके जीवोंको भगवद्सम्मुख करना होता है । श्रीरामदासजीके मनमें ग्रामवासियोंके प्रति लेशमात्र भी रोष नहीं था , वे तो अपने उद्देश्यकी सिद्धिके लिये ही धरापर विचरण कर रहे थे । संयोगकी बात , जिस समय आप नदीके किनारे बैठे थे , उसी समय उस राज्यके राजाका राजकुमार मर गया राजा प्रजा सब करुण - क्रन्दन करते हुए राजकुमारके शवको लेकर दाह संस्कार करने नदीके किनारे आये । उस करुण - क्रन्दनको सुनकर श्रीरामदासजीका सन्त - हृदय द्रवित हो गया । वे राजाके पास गये और बोले - ' राजन् ! यदि आप और आपकी प्रजा आजसे यह प्रतिज्ञा करें कि हम लोग साधु , ब्राह्मण , अतिथि अभ्यागतोंकी यथाशक्ति सेवा करेंगे , भगवान्‌का भजन करेंगे , सबके प्रति सद्भाव रखेंगे , तो में भगवान्‌से प्रार्थना करके इस बालकको जीवन दान दिला सकता हूँ । ' भला , अन्धा क्या चाहे - दो आँखें । राजा - प्रजा सभी सन्तके चरणों में गिर पड़े और शपथपूर्वक प्रार्थना की कि अब हम लोग कभी भी सन्तों भक्तोंका अपमान नहीं करेंगे और यथाशक्ति उनकी सेवा और भक्ति करेंगे । राजाने भी अपने राज्यमें धर्मप्रचार और भक्तिभावके प्रसारकी शपथ ली । श्रीरामदासजीने शालग्रामशिलापर तुलसीदल चढ़ाया और उसका पादोदक राजकुमारके मुखमें डाला । अकाल मृत्युका हरण करनेवाले उस महाप्रसादके मुखमें जाते ही , राजकुमारने इस तरह आँखें खोल दीं , जैसे अभी - अभी नींद पूरी हुई हो । चारों ओर सन्त - भगवन्तकी जय जयकार होने लगी । इसी प्रकार सन्त श्रीसारीरामदासजीने अनेक भगवद् - विमुख लोगोंको भक्तिपथका पथिक बनाया । 

श्रीरंगजी 

श्रीरंगजी श्रीअनन्तानन्दाचार्यजी महाराजके प्रधान शिष्योंमें एक थे । गृहस्थाश्रमके समय आपका निवास द्यौसा नामक ग्राममें था , जो तत्कालीन जयपुर राज्यमें आता था । आप वैश्यकुलमें उत्पन्न हुए थे । आपके यहाँ सेवाकार्य करने के लिये एक नौकर रखा गया था , परंतु वह स्वभावसे बड़ा ही दुष्ट था । कोई भी पापकर्म उससे शेष नहीं था । कालवश मृत्युको प्राप्तकर वह यमलोक गया । वहाँ उस पापीको यमराजने दूतकार्य में नियुक्त किया और मृत प्राणियों के प्राणोंको लानेका कार्य सौंपा । एक बार यमराजने उसे एक बनजारेके प्राणोंका हरण करके लाने को कहा , जो कि उसी धौसा ग्रामका रहनेवाला था , जहाँ यह मरने से पहले श्रीरंगजी के यहाँ नौकरी करता था । वहाँ आनेपर वह सबसे पहले श्रीरंगजीसे मिलने गया । वे उसे देखते ही चौंक पड़े और बोले- अरे मैंने सुना कि तू मर गया है , फिर तू यहाँ कैसे आ गया ? Copy code snippet यमदूतने कहा मालिक । आपने ठीक ही सुना था , मैं मर चुका हूँ और अब यमदूत बन गया हूँ । यहाँ मैं बनजारेको ले जाने आया हूँ श्रीरंगजीने कहा- अभी तो वह पूर्ण स्वस्थ है और थोड़ी देर पहले ही मेरे यहाँसे कुछ माल लादकर ले गया है , उसे तुम कैसे ले जाओगे ? उसने कहा- मैं उसके बैलकी सींगपर बैठ जाऊँगा , जिससे कालप्रेरित वह बैल सींग मारकर उसका पेट फाड़ देगा । श्रीरंगजीने पूछा- क्या तुम लोग सबके साथ ऐसा ही व्यवहार करते हो ? यमदूत बोला- नहीं , हम लोग केवल पापियोंके साथ ही ऐसा व्यवहार करते हैं , भगवान्के भक्तोंकी ओर तो हम देख भी नहीं सकते , अतः मैं आपको भी यह सलाह देने आया हूँ कि जीवनके शेष भागमें आप भगवद्भक्ति कर लें । मैंने आपका नमक खाया है , अतः आपको कष्टमें पड़ते नहीं देखना चाहता हूँ । आपको यदि मेरी बातोंपर विश्वास न हो तो आप मेरे साथ बनजारेके घर चलिये मैं केवल आपको ही दिखायी दूँगा , दूसरा कोई मुझे नहीं देख सकेगा । वहाँ मेरे बतायेके अनुसार जब सारी घटना घटे , तो मेरी बातकी सत्यता समझ लेना । हम लोग पापी प्राणियोंको इसी प्रकार ले जाते हैं और यमलोक ले जाकर उसके पापोंके अनुसार और भी नाना प्रकारके कठोर दण्ड देते हैं । 

      Copy code snippet लो इसे रो रह क प R यह कहकर यमदूत बनजारेका प्राण - हरण करनेके उद्देश्यसे उसके घरकी ओर चल दिया । श्रीरंगजी भी उसके पीछे - पीछे चल दिये , वहाँ जाकर श्रीरंगजीने देखा कि बनजारा अपने बैलको खली - भूसा चला रहा है । बैल बार - बार सिर हिला रहा था , जिससे बनजारेको खली - भूसा चलाने में असुविधा हो रही थी ; अतः उसने एक हाथसे बैलको जोरसे हटाया । ठीक उसी समय यमदूत जाकर बैलकी सींगोंपर बैठ गया , फिर तो कालप्रेरित बैलने क्रोधमें भरकर सींगोंसे ऐसा प्रहार किया कि बनजारेका पेट फट गया , उसकी आत बाहर निकल आय और वह वहीं तुरंत मर गया । 

 श्रीरंगजीकी आँखोंके सामने घटी इस आश्चर्यमयी घटनाने उनकी आँखें खोल दीं , उन्होंने श्रीअनन्तानन्दजी महाराजके चरण पकड़े और उनके उपदेशानुसार भगवद्भक्ति करने लगे । श्रीरंगजीका श्रीपीपाजीके प्रति भी बड़ा ही आदर भाव था , श्रीपीपाजीने एक मासतक उनके द्यौसा ग्राममें निवास और सत्संग किया । इनके समयमें द्यौसा ग्राम श्रीरामरंग में रंग गया था । इस घटनाका श्रीप्रियादासजीने अपने एक कवित्तमें इस प्रकार वर्णन किया है-

 द्यौसा एक गाँव तहाँ श्रीरंग सुनाम हुतो बनिक सरावगी की कथा लै बखानिये । रहतो गुलाम गयो धर्मराज धाम उहाँ भयो बड़ो दूत कही सुनु अरे बानिये ॥ आये बनिजारे लैन देख तू दिखावै चैन बैल शृङ्ग मध्य पैठि मारे पहिचानिये । बिनु हरि भक्ति सब जगत की यही रीति भयो हरि भक्त श्रीअनन्त पद ध्यानिये ॥ ११७ ॥ 

श्रीरंगजीके पुत्रको रातमें भूत दिखायी देता था , उसके भयसे वह नित्य सूखता ही चला जाता था । श्रीरंगजीने बालकसे इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि रातमें भयंकर प्रेतके देखनेसे मैं दिन - रात चिन्तित रहता हूँ । तब श्रीरंगजी पुत्रके सोनेके स्थानपर स्वयं सोये रात होते ही वह प्रेत आया । श्रीरंगजी क्रोध करके उसे मारनेके लिये दौड़े । प्रेतने दैन्यतापूर्वक कहा कि आप कृपा करके मुझे इस पापयोनिसे मुक्त करके सद्गति प्रदान कीजिये मैं जातिका सुनार हूँ , परायी स्त्रीसे पाप सम्बन्धके कारण मैं प्रेत हो गया हूँ । अपने उद्धारका उपाय संसारमें खोजनेके बाद अब आपकी शरण ली है । प्रेतकी आर्तवाणी सुनकर श्रीरंगजीने उसे चरणामृत दिया और उसका अत्यन्त सुन्दर दिव्यरूप कर दिया । इस प्रकार श्रीरंगजीके भक्तिभावका गान किया गया है । श्रीरंगजीकी महिमा सम्बन्धी इस घटनाका भक्तमालके टीकाकारने इस प्रकार वर्णन किया है

 सुत को दिखाई देत भूत नित सूख्यो जात पूछें कही बात जाइ वाके ठौर सोयो है । आयो निशि मारिबेको धायो यह रोष भर्यो देवोगति मोकों उन बोलिकै सुनायो है ॥ जाति को सोनार परनारि लगि प्रेत भयों लयों तेरी शरण मैं ढूंढ़ि जग पायो है । Copy code snippet दियो चरणामृत लै कियो दिव्यरूप वाको अति ही अनूप सुनो भक्तिभाव गायो है ।। ११८ ।।

हरिशरणम हरिशरणम हरिशरणम 

आपका दासानुदास 

BHOOPAL Mishra 

Sanatan vedic dharma 

bhupalmishra35620@gmail.com 


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