धर्म मनुष्य का सोफ्टवेर पार्ट है ।

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धर्म मनुष्य का साफ्टवेयर पार्ट है ।


 धर्म मनुष्य का सबसे महत्वपूर्ण सोफ्टवेयर पार्ट है । जिसे नही धारण करने से मनुष्य मे अनेक कमियां नजर आती है । मनुष्य मे अनकों विकृतियां उत्पन्न हो जाती है ।जो मनुष्य को पतन की ओर ले जाता है । मनुष्य विकृत होकर अनाप-शनाप बकने लगता है ।अनाप-शनाप क्रिया करने लगता है । खान-पान, रहन-सहन भी गिर जाता है । बुद्धि कुत्सित विचारों से भर जाता है । फिर उसे सही गलत का निर्णय लेना कठिन हो जाता है । उसे एसा लगता है कि मै जो कर रहा हूं, , वही सत्य है । बुद्धि के भ्रष्ट होने से विवेक नष्ट भ्रष्ट हो जाता  है । फिर  , जब नाश मनुष्य पर छाता है ।पहले विवेक मर जाता है ।

दुसरे रूप मे भी आप देख सकते है,  जो कोई गलत काम करता है ।वह यदि स्वयं समझ ले कि यह गलत काम है ,तो वह कदापि नही करेगा ।कुत्सित बुद्धि का अर्थ है । बुद्धि का पतन। 

धर्म, जिसे हम धारण करते है । अर्थात, मनुष्य का वह अंग जिसे हम अपने शरीर मे अलग से लगाते है । 

जैसे हमारे सनातन वैदिक धर्म मे 42 संस्कार का वर्णन आया है ।इन्ही संस्कार के माध्यम से धर्म रूपी सोफ्टवेयर को अपने शरीर मे इन्स्टाल करते है । जब तक हमारा यह साफ्टवेयर एक्टिव रहता है ।तबतक हम अनेको तरह के ऊर्जा से सम्पन्न रहते हुए ऊन्नत होते रहते है । इन संस्कारो के प्रति आलस्य होने पर पुनः पतन भी शुरु हो जाता है । कारण यह कि इन संस्कार से सम्पन्न कराने वाले गुरू को भूल जाते है ।उनकी उपयोगित को हम तिरस्कृत करने लगते है ।तो फिर शुरु हो जाता है विनाश का तांडव। पुनरपि जननी जठरे शयनम। 

यह भुल प्रायः सभी करते है ।मै भी कर रहा हूं । क्योकि इसपर विजय पाना ही काल और मृत्य पर विजय पाना है ।

प्रसंग यह है कि धर्म को सोफ्टवेयर कहने कि आवश्यकता क्यो महसूस हुई ?

सोफ्टवेयर कहनै का तात्पर्य है -

यह पार्ट मेरे शरीर मे लगा है । लेकिन हम इसे देख नही पाते है । शायद इसीलिए विश्वास करना भी कठिन हो जाता है ।और हम नास्तिक बन जाते है । 

पार्ट, अंग, कल पुर्जे से ही पुरा शरीर का निर्माण है । चाहे वह जीव हो या निर्जीव। निर्जीव (मोटर वाहन) वह भी अनेको प्रकार के पार्ट पुर्जे से ही निर्मित होता है । किसी भी पार्ट का महत्व कम नही है । हम किसी के उपयोगिता को नकार नही सकते है ।यदि ऐसा करते है तो फ़िर उसका दुष्परिणाम भी तत्काल मिल जाता । 

 धर्म रूपी सोफ्टवेयर के जो अनेक यम नियम, आहार व्यवहार, खानपान  रहन सहन ,आदि सोफ्टवेयर है । इनपर ही समग्र थ्यान केन्द्रित करनी चाहिए। 

हमारे सारे ग्रंथ, सारे महापुरुष चीख चीख कर पुकार पुकार कर इतनी सी बात ही कही है -

धर्म रूपी सोफ्टवेयर को अपडेट करते रहो । और कोई काम करने की आवश्यक्ता कहां है । धर्म रक्षति रक्षित ।  जो धर्म की रक्षा करता है ।धर्म उसकी रक्षा करता है । 

आज हम कम्प्यूटर, मोबाइल, मिसाईल, राकेट, एटम बम के युग मे कितना सुरक्षित है । यह कहने की आवश्यकता नही है । कारण हम अपनी धर्म की रक्षा पर वजट नही बनाते है ।

अपनी सुरक्षा पर वजट बना बनाकर असुरक्षित हो रहे है ।सबका साथ सबका विनाश के नारे को बुलन्द कर जगत गुरू बन जाते है । 

अधर्म के वर्चस्व का कारण क्या है ? सार्ट कट  अर्थात  मैं सुन्दरी, पिया सुन्दरी। गांव के लोग बनरा - बनरी।  

बिना योग्यता पात्रता के ही सबकुछ पाने की होङ लगी है । हमारे धर्म में सभी प्रकार के संकट के निवारण करने विधि विधान मौजूद है । हमे किसी के गुलामी करने की आवश्यक्ता ही नही है । इतिहास गवाह है ।गुलाम कौन हुआ ?जो धर्म की गुलामी नही की है । क्रमशः 


हरिशरणम हरिशरणम हरिशरणम 

BHOOPAL Mishra 

Sanatan vedic dharma karma 

Bhupalmishra35620@gmail.com 







इसी अवस्था मे मनुष्य कुछ भूल भी कर लेता है ।  

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