Ahar &Vyavhar आहार कैसा होना चाहिए?

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मनुष्य के जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला कौन है ? 

जीव मात्र को  सबसे अधिक प्रभावित करने वाला है ,उनका आहार।  जी हां ,आप भी इस बात पर रिसर्च कर सकते है ।। चरित्र निर्माण मे भोजन का ही सबसे महत्वपूर्ण योगदान है । जैसा अन्न। वैसा मन ।। आपने सुना होगा ।आपके धर्म मे कितनी अच्छी बात क्यों न लिखी हो ,जबतक आहार पर थ्यान नही देंगे तबतक अच्छी बात समझ मे नही आएगी। चाहे वह अच्छी बात आपके मां बाप कहे ,पति पत्नी कहे ,पुत्र पुत्री कहे या फिर आप का सबसे प्यारा कुटुम्ब ही क्यों न कहे । आपके समझ मे नही आने वाला है ।

आहार मे साकाहार और मांसाहार दो ही प्रमुख आहार है ।आप पशु मे भी देख सकते है । मांसाहार करने वाला और साकाहार करने वाला पशु का स्वभाव मे कितना अंतर है ।

मनुष्य मे भी साकाहारी और मांसाहारी मनुष्य के स्वभाव मे अंतर समझ सकते है । दोनो के समझने के शक्ति मे भी अंतर है । जहां साकाहारी मनुष्य किसी बात को आसानी समझ जाता है ,वही उसी बात को मांसाहारी आजीवन मे भी नही समझ पाता है । यदि जोर जबर्दस्ती बात मान भी ले तो ,कभी भी विश्वास नही करना चाहिए। जबतक वह विवश है तभी तक समझने का ढोंग करेगा। मोका मिलते ही औकात दिखा देगा ।

भोजन का असर तो इतना ज्यादा है । कि साकाहार करने वाला भी दुषित भोजन कर लिया तो उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है । फिर वह कितना बङा साकाहारी क्यों न हो, हिसा छोड़कर बाकी किसी भी कुकर्म से परहेज नही कर सकता है ।हमने ऐसे बङे बङे साकाहारी परिवार को देखते है ,जो श्रृष्टि के आरंभ से ही साकाहारी है । लेकिन उनका कर्म किसी भी मांसाहारी से कम नही है । हिंसा के शिवा किसी भी कुकर्म को करने से कभी परहेज नही करते है । साकाहार से इनकी बुद्धि तो तीक्ष्ण हो जाती है ।जिसे ये कुकर्म मे लगाकर विनाश कर लेते है । इनमे जो सत्कर्म करने लगते है वही मुक्त हो जाते है । महापुरुष हो जाते है।  जो कुकर्म करने लगते है, वह भी धनवान तो हो ही जाते है ।

सात्विक आहार से सात्विक व्यवहार होने की संभावना बढ जाती है । 

लेकिन मांसाहार से तामसी व्यवहार होने लगता है ।और ये राजसी की ओर आकर्षित तो होते है ।पर यह इनका स्वप्न ही होता है । तामसी व्यवहार से राजसी सुख पाकर भी उनसे वंचित ही रहते है । सात्विक व्यवहार तो इनका परम शत्रु हो जाता है । सात्विक भाव को समझना इनके लिए दुष्कर हो जाता है । तामसी का अर्थ है अंधकार , सात्विक का अर्थ है प्रकाश । जिसे अंधकार प्रिय है उसे प्रकाश कैसे प्रिय लगेगा ।

आहार शुद्धि का अर्थ है जो भोजन आप खा रहे है ।वह कितना शुद्ध है।  आपने किस प्रकार प्राप्त की है ?   वह अन्न न्यायोपार्जित है कि नही ? यदि नही तो जिस विधि से वह अन्न प्राप्त हुई है ।वैसे ही कर्म आपसे करवा लेगा ।

चाहे आप खानदानी साकाहारी ही क्यो न हो । भोजन बनाने वाले पर भी भोजन का प्रभाव पडता है। 

पारिवारिक जीवन मे तो घर की नारी शक्ति ही भोजन बनाती है ।  आज के थर्म निरपेक्ष देश मे रसोइया भी सुरक्षित नही है  । कयोकि ,संयुक्त परिवार को खत्म करने से सबसे बङा नुकसान है कि जिस समय नारी का स्पर्श नही करना चाहिए, उनका मुख नही देखना चाहिए, उनके छुए हुए वस्तु का ग्रहण नही करना चाहिए  ।वो सब भी हमे करना पडता है । क्योंकि हम विवश है । रसोईये के व्यवहार का भी भोजन पर असर पङता है । खाना बनाने के समय मे रसोईया का मानसिक प्रभाव भी भोजन को प्रभावित करता है । अगर रसोईया अपने प्रियजन के लिए भोजन बनाता है तो ही भोजन लाभकारी होगा। अन्यथा वह विष तुल्य है ।

आज के समय हम भोजन पर जानवरो के तरह टुट पङते है।  आदर पूर्वक प्राप्त भोजन पर भी विचार करन चाहिए। 

क्रमशः 



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