शांति का रहस्य

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            शांति का रहस्य 



 सनातन धर्म मे शांति शब्द पर काफी जोर दिया जाता है ।वैसे तो युद्ध का इतिहास इतना बङा है कि जिसका वर्णन करना संभव नही है ।प्रथम देवासुर संग्राम के सम्बन्ध मे कागभुसूंडी महाराज कहते है कि प्रथम देवासुर संग्राम मे इतनी खून की नदी  बही थी की वृक्ष पर बैठे बैठे चोंच डुबोकर खुन पीते थे। इस तरह के अनेको प्रकार के युद्ध से सनातन इतिहास भरा पडा है ।

वैसे तो युद्ध का कारण सैद्धांतिक मतभेद ही है । यह मतभेद कभी खत्म होने वाला नही है ।अर्थात युद्ध भी होता ही रहेगा। संसार को संग्राम की तरह ही सजाया गया है । जीवन पर्यंत संग्राम करना है। 

पहले के जमाने मे युद्ध की शिक्षा दी जाती थी । अब तो सिर्फ सेना मे भर्ता होने पर ही इसकी शिक्षा संभव है ।

शांति कौन नही चाहता है ? हर आदमी शांतिपूर्ण जीवन यापन करने के लिए ही इतने सारे प्रयास करते है।  फिर भी शांति नही मिलती है ।बल्कि शांति से अधिक अशांति मिलती है । आजीवन करने वाला कठिन से कठिन परिश्रम व्यर्थ हो जाता है  ।

शांति का मार्ग ही सनातन धर्म है । उदाहरण प्रत्यक्ष है । हिंदु धर्म पर कितने अत्याचार हुए। फिर भी हिंदु शांत है । सनातन धर्म मे ही शांति का रहस्य छुपा है।   इतने सारे योग, इतने  सारे कर्मकांड, इतने सारे देवी देवता, ये सभी शांति प्रदान करने के लिए ही तो है ।

इस ब्लॉग मे सबके सब चरित्र शांति प्रदान करने वाला है ।

इस कलिकाल मे लोग भला बुरा मिश्रित कर्म करते है । जो कल्याण कारी नही है । आप एक समय कितने रास्ते पर चल सकते हो ?  एक रास्ते पर, तो चलो एक ही रास्ता पर चलते रहो धीरे धीरे शांति मिल जाएगी। पूर्ण शांति। 

यह अपूर्व, आलौकिक , परमानन्द, शांति संसार मे एक ही व्यक्ति प्रदान कर सकता है । जिसे वुद्धिमान लोग  गुरू के नाम से जानते है । मनुष्य जीवन मे सिर्फ एक आदमी जिसे मिल गया वही धन्य है ।कृत्य कृत्य है । तात्पर्य यह कि पुरे जीवन मे मात्र एक  आदमी की जरूरत है । गुरू मेहरबान, चेला पहलवान। । शांति परम शांति......

इस कलिकाल मे हिन्दुस्तान पर अनगिनत अत्याचार हुए है । इस समय यवन आक्रान्ता जो राज किया ,उसका मूल कारण अतिसूक्ष्म है । हिंदु के परास्त होने का कारण यह था कि यवन हिंदु को धोखे से पतित कर दिया करता था । पतित हुए हिंदु अपने धर्म से च्युत हो जाता था । धीरे धीरे इनकी संख्या की वृद्धि हो गई। और तब जाकर हिंदुओं पर कब्जा किए।  

लेकिन इस समय भी इतने महापुरुष का अवतार हुआ ,जो अकेले ही बिना अस्त्र शस्त्र यवन राजा को झुका देते थे । कई संत तो ऐसे हुए जो इस कौम का ही विनाश करने मे समर्थ हुए।  

रामानन्द स्वामी महाराज के पास अयोध्या से बहुत से हिंदु काशी आए  और स्वामी जी निवेदन किया कि अयोध्या मे बहुत सारे हिंदु को मुस्लिम बना दिया है ।आप ही हमारी रक्षा करने मे समर्थ है । रामानन्द स्वामी नाराज हो गए। उन्होने तुरंत अजान और नमाज बंद कर दिया।  यानि पुरे विश्व मे कोई भी अजान नमाज पढ ही सकता था।  कंठ ही अवरूद्ध हो गया।  पुरे विश्व मे तहलका मच गया। कई दिनोंतक नमाज बंद हो गया।  किसी को समझ मे नही आता था क्या  गया है ।ईधर कबीरदास जी जो प्रधान शिष्य थे । कबीरदास जी स्वामी जी के प्रभाव को जानते थे । इसलिए रामानन्द स्वामी को शांत कर रहे थे । कबीरदास नही चाहते थे इतना बङा नरसंहार हो जाय।  रामानन्द स्वामी जी इचछा मात्र से तत्काल ही समूल नष्ट हो जाता। 

अजान और नमाज बंद होने के कई दिन के बाद अरब के किसी बङे मुल्ल को  होने होने के कारण का पता चला। फिर वहां से मुल्ला का एक दल भारत आया ।और तत्काल राजा के पास जाकर कहा रामानन्द स्वामी नाम का फकीर ने ही बंद किया है ।वही कुछ कर सकता है ।फिर राजा के साथ रामानन्द स्वामी से ।और विनती करने लगे। स्वामीजी मानने को तैयार नही थे ।लेकिन कबीरदास जी ने कहा दुष्ट का विनाश करने के लिए भगवान का अवतार होता है । संत का अवतार तो दुष्टता को नाश करने के लिए होता है । संत हत्या कैसे कर सकता है । फिर रामानन्द स्वामी ने एक शर्त पर पर हस्ताक्षर करवाए।  जिसमे हिंदु धर्म पर अत्याचार नही करने की शर्त थी।  हस्ताक्षर करने के बाद स्वामी जी छोड़ दिया । उसी समय 40000 मुस्लिम तत्काल ही हिंदु बन गए।  अयोध्या से आए हुए हिंदुओ से कहा कि जाओ तुमलोग सरयू जी के तट पर इंतजार करना। मै पहुंच जाऊँगा।  

निर्धारित समय पर सभी हिंदु सरयू जी के तटपर इकठ्ठा हुए। योग बल से स्वामी जी पहुँचे।  और सभी हिंदुओ को कहा कि जाओ सरयूजी मे डुबकी लगाओ।  डुबकी लगाने के बाद सभी तत्काल हिंदु हो गए।  इन सभी के सुन्नत चिन्ह भी खत्म हो गया।  

मित्र  समय समय पर  यदाकदा हि धर्मस्य.....चरित्रार्थ हो जाती है । 

अशांत सिर्फ धर्म से विमुख हिंदु है । शांति सनातन धर्म के आचरण से ही संभव है ।



 क्रमश:

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