Shojha ji Maharaj, हिन्दु भक्तराज सोझाजी महाराज

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    श्रीसोझाजी महाराज के पावन चरित्र 

श्रीसोझाजी दम्पती भगवद्भक गृहस्थ थे । धीरे - धीरे जगत्‌की असारता , सांसारिक सुखोंकी असत्यता और श्रीहरिभजनकी सत्यताका सम्यक् बोध हो जानेपर आपके मनमें तीव्र वैराग्य उत्पन्न हो गया । आपने अपनी धर्मपत्नीके समक्ष अपने गृहत्यागका प्रस्ताव रखा तो उस साध्वीने न केवल सहर्ष प्रस्तावका समर्थन किया , बल्कि स्वयं भी साथ चलनेको तैयार हो गयीं । इसपर आपने कहा कि यदि तुम्हारे हृदयसे समस्त सांसारिक आसक्तियाँ समाप्त हो गयी हों तो तुम भी अवश्य चल सकती हो । 

अन्ततोगत्वा अर्धरात्रिके समय आप दोनोंने घर - द्वार , बन्धु बान्धव , कुटुम्ब - परिवार - सबकी ममताका त्याग कर दिया और घर छोड़कर चल दिये । आपकी तो प्रभुकृपापर अनन्य निष्ठा थी , इसलिये साथ कुछ नहीं लिया , परंतु आपकी पत्नी अपने दस माहके शिशुके प्रति वात्सल्यभावको न त्याग सकी और उसको भी अपनी गोदमें लेते आयी । रातभर पैदल चलनेके उपरान्त प्रातः कालके उजालेमें आपने जब पत्नीकी गोदमें शिशुको देखा तो बहुत नाराज हुए और बोले- ' अभी तुम्हारे मनमें संसारके प्रति बहुत राग है , यदि तुम मेरे साथ चलना चाहती हो तो इस शिशुको यहीं छोड़ दो । ' पत्नीने बड़े ही करुण स्वरमें कहा - ' नाथ ! यहाँ इसका लालन - पालन कौन करेगा ? ' आपने पृथ्वीपर रेंगते हुए जीव - जन्तुओंको दिखाकर कहा- ' जो इनका पालन करता है , वही इस बालकका भी पालन करेगा । ' आपकी आज्ञाका पालन करते हुए आपकी पत्नीने बालकको वहीं छोड़ दिया और दोनों लोग आगे बढ़ गये । 

उधर परिवारके लोगोंने आप दोनोंकी खोज की तो आप लोग तो मिले नहीं , पर आपका बालक उन लोगोंको मिल गया , जिसे आगे चलकर उस देशके राजाने संतानहीन होनेके कारण गोद ले लिया और वह आगे चलकर राजा बना । इधर आप लोगोंको चलते - चलते पूरा दिन बीत गया , परंतु कहींसे भोजन तो क्या , अन्नका एक दाना भी नसीब नहीं हुआ । आपने सोचा कि हम लोग तो अब प्रभुके ही आश्रित हैं , ऐसेमें प्रभु हमें अपने प्रसादसे क्यों वंचित कर रहे हैं ; मेरे पास तो कुछ है नहीं , लगता है कि मेरी पत्नीके पास कुछ धन है , इसीलिये हम प्रभुकृपासे वंचित हो रहे हैं । आपने पत्नीसे पूछा तो उन्होंने सोनेकी एक मुहर दिखाते हुए कहा कि बस यही एक मुहर मेरे पास है । आपने कहा ' जब घर त्याग दिया , धन - सम्पत्ति त्याग दी , तो इस एक बाधाको क्यों अपने साथ लगाये हो , इसे भी फेंको तभी प्रभुकी कृपाका प्रसाद मिल सकेगा । ' पत्नीने तुरंत मुहर फेंक दी और आप लोग आगे बढ़ गये । इन दम्पतीकी वार्ता और इस घटनाको देख रहे लोगोंको बड़ा आश्चर्य हुआ और उन लोगोंने मान लिया कि ये लोग सच्चे और सिद्ध सन्त हैं , अतः इनके नगरमें पहुँचनेसे पहले ही इनकी कीर्ति वहाँ फैल गयी । फिर तो लोगोंने इनकी खूब आवभगत की और आदर - सत्कार किया । कुछ दिनतक उस नगरमें निवास करनेके बाद आप लोग श्रीद्वारकापुरीकी यात्रापर चल दिये । कहते हैं कि मार्गमें कुछ दुष्टोंने इनकी पत्नीका हरण कर लिया । इसपर अपने धर्मकी रक्षाके लिये पतिव्रता पत्नीने भगवान्‌को पुकारा । अपने अनन्य भक्तके कष्टको भगवान् अनदेखा कैसे कर सकते थे । उन्होंने तुरंत हनुमान्जीको आदेश दिया और हनुमान्जीने प्रकट होकर उन दुष्टोंको यथोचित दण्ड दिया और आपकी पत्नीको आपके पास वापस लाये , साथ ही भगवान्ने आकाशवाणीसे उनकी पवित्रता भी प्रमाणित कर दी । '


 बारह वर्ष बाद अचानक एक दिन आपकी पत्नीको अपने उस दुधमुँहे शिशुकी याद आयी , जिसे वे आपके कहनेपर रास्तेमें ही छोड़कर चली आयी थीं । उन्होंने इस बातको आपसे कहा । प्रभुकृपासे आप तो सब जानते ही थे , फिर भी पत्नीको भगवत्कृपाके दर्शन कराने के लिये उन्हें लेकर अपने देश वापस लौटे । 

वहाँ वे एक बागमें रुके और मालीसे पूछा - ' यहाँका राजा कौन है ? ' मालीने बताया- ' यहाँक राजाको कोई संतान नहीं थी ; अतः उन्होंने भक्त सोझाजीके पुत्रको गोद ले लिया था , जिसे उसके माता - पिता जंगल में छोड़ गये थे , अब यही लड़का यहाँका राजा है । ' सोझाजीकी पत्नी इस भगवत्कृपासे गद्गद हो गय , उन्हें विश्वास हो गया कि जो अनन्य भावसे प्रभुकी शरण में जाते हैं , उनके योग क्षेमका वहन स्वयं श्रीभगवान् , करते हैं । 


श्री सींबाजी महाराज का मंगलमय चरित्र 

श्रीसींवाजी भगवद्भक्त सद्गृहस्थ थे । आपकी सन्तसेवामें बड़ी निष्ठा थी । आपके दरवाजेपर सन्त मण्डली प्रायः आती रहती थी , इससे समाजमें आपका सम्मान भी बहुत था । आपकी यह प्रतिष्ठा अनेक लोगोंकी ईर्ष्याका कारण बनी । उन लोगोंने राजासे आपकी शिकायत कर दी । 

अविवेकी राजाने भी बिना कोई विचार किये आपको कारागारमें डाल दिया । आपकी सन्त प्रकृति थी , अत : आपके लिये सुख दुःख , मान - अपमान सब समान ही थे , परंतु आपको इस बातका विशेष क्लेश था कि अब मेरी सन्तसेवा छूट गयी है । एक दिन एक सन्तमण्डली आपके घरपर आयी , जब आपको इस बातका पता चला तो आपको बहुत दुःख हुआ । आपने भगवान्से प्रार्थना की कि ' प्रभो यदि मेरे पंख होते तो मैं उड़कर सन्तोंके पास चला जाता और उनकी सेवा करता , पर क्या करूँ , यहाँ तो मैं लाचार हूँ । सर्वसमर्थ प्रभुसे अपने भक्तकी सच्ची तड़पन और उसकी मानसिक पीड़ा देखी न गयी । उसी समय चमत्कार हुआ और आपकी हथकड़ी - बेड़ी टूटकर जमीनपर गिर पड़ी , जेलके फाटक भी अपने आप खुल गये । 

आप सन्तोंके पास पहुँच गये और भावपूर्वक उनकी सेवा की । उधर राजकर्मचारियोंने देखा कि जेलका फाटक खुला है और इनके कमरेमें हथकड़ी - बेड़ी टूटी हुई जमीनपर पड़ी है तो उनके आश्चर्यका ठिकाना न रहा । उन्होंने इस बातकी खबर राजाको दी । अविवेकी राजाको इस घटनामें भगवत्कृपाके दर्शन होनेके स्थानपर जेलसे भागनेका अपराध ही दृष्टिगोचर हुआ और उसने पुनः आपको पकड़कर लानेका आदेश दिया । आप कहीं भागे तो थे नहीं , घर जाकर सन्तसेवा ही कर रहे थे । राजाके सिपाही वहाँ पहुँचकर आपको फिरसे हथकड़ी - बेड़ीमें जकड़ने लगे , परंतु प्रभुकृपासे आपके शरीरका स्पर्श होते ही वे हथकड़ियाँ भी टूटकर जमीनपर गिर पड़ीं । जब राजाको इस बातकी सूचना दी गयी तो उस मूर्खने कहा कि यह कोई जादूगर है , जो इन्द्रजाल कर रहा है , अतः इसे पकड़कर प्राणदण्ड दे दो । राजाकी आज्ञाके अनुसार जल्लादोंने आपको तलवारके घाट उतारना चाहा , परंतु ' सीम कि चाँपि सकइ कोउ तासू । बड़ रखवार रमापति जासू ॥ ' भला , उसको कौन मार सकता है , जिसकी रक्षा स्वयं भगवान् कर रहे हों ।

 जल्लादोंके उठे हाथ उठेके उठे रह गये , मानो वे जीवित प्राणी न होकर चित्रलिखित हों । राजाको जब यह वृत्तान्त सुनाया गया तो भगवत्कृपासे उसके ज्ञानचक्षु खुल गये वह नंगे पैर भागकर आया और आपके चरणों में गिरकर क्षमा प्रार्थना करने लगा । आपके मनमें कोई विकार भाव तो था ही नहीं , अतः तुरंत ही क्षमा कर दिया । अब राजाको उन ईर्ष्यालु व्यक्तियोंका ध्यान आया , जिनकी शिकायतपर राजाने आपको कारागारमें निरुद्ध कराया था ।

 उसने उन लोगोंको तुरंत प्राणदण्ड दे देनेका आदेश दिया । यह देखकर आपका मन बड़ा दुखी हुआ और हृदय अपार करुणासे भर गया । आपने राजासे कहकर तुरंत उन सबको भी मुक्त करा दिया । इस प्रकार श्रीसींवाजी गृहस्थ में रहते हुए भी आदर्श सन्त थे ।


हरिशरणम हरिशरणम हरिशरणम 

BHOOPAL Mishra 

Sanatan vedic dharma 

Bhupalmishra108.blogspot.com 


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