Sri bithlesh sut

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 विट्ठलेशसुत जी के पावन चरित्र 

श्रीगिरधर जू सरससील गोबिंद जु साथहि । बालकृष्ण जसबीर धीर श्रीगोकुलनाथहि ॥ श्रीरघुनाथ जु महाराज श्रीजदुनाथहि भजि । श्रीघनस्याम जु पगे प्रभू अनुरागी सुधि सजि ॥

ए सात प्रगट बिभु भजन जग तारन तस जस गाइये । श्रीबिठलेस सुत सुहृद श्रीगोबरधन धर ध्गुयाइये ।।

गुसाई श्रीविठ्ठलनाथजीके पुत्रोंको सर्वभूतसुहद् साक्षात् श्रीगोवर्धनधारी श्रीकृष्ण जानकर उनका ध्यान करना चाहिये । उनके नाम है- १ श्रीगिरिधरजी , जो बड़े रसिक एवं अत्यन्त सुन्दर शील स्वभाववाले थे । गोविन्दजीका स्वभाव भी वैसा ही था । ३- श्रीबालकृष्णजी महायशस्वी हुए । ४- श्रीगोकुलदासजी बड़े महापुरुष हुए । ५- श्रीरघुनाथजी महाराज एवं ६ श्रीयदुनाथजी महाराज अपने समगुणोंसे भजनेयोग्य हुए । इसका भजन करना चाहिये । ७- श्रीघनश्यामजी सदा सर्वदा प्रभुप्रेममें पगे रहते थे , बड़े अनुरागी थे , हृदयमें मेश प्रभुकी स्मृति सँजोये रहते थे । ये सात प्रत्यक्ष ही भगवद्विभूति थे , भगवद्भजनमें परम प्रवीण एवं श्रीकृष्णकी ही भाँति ये भी संसारका उद्धार करनेवाले थे । इनका यशोगान करना  चाहिये ।। 

      गुसाई श्रीविठ्ठलनाथजीके पुत्रों ( विट्ठलेशसुत ) का विशेष वर्णन इस प्रकार है 

गोसाईं श्रीविठ्ठलनाथजीके सात पुत्र ( विट्ठलेशसुत ) गुसाईं श्रीविठ्ठलनाथजीका श्रीठाकुरजीके प्रति वही भाव था , जो नन्दरायजी और यशोदारानीका बालकृष्णके प्रति था । श्रीठाकुरजीने भी इनके वात्सल्यभावको स्वीकार किया था और उनके साथ छोटे बालक जैसी ही लीला किया करते थे । वे कभी दूध पीनेमें आना कानी करते , कभी सोनेमें तो कभी बन्दरसे डरकर उनकी गोदमें छिप जाते । श्रीगुसाँईजी उनकी इस लीलासे आनन्दविभोर हो जाया करते थे । उनके वात्सल्यभावपर रीझकर एक बार श्रीठाकुरजी प्रकट हुए और उनसे वर माँगनेको कहा । तब आपने यह वर माँगा कि आपने द्वापर में श्रीनन्दरायजीको जैसी बाललीलाका सुख दिया एवं उनका आपमें जैसा वात्सल्य - स्नेह था , वैसा ही सुख एवं वैसा ही स्नेह आप कृपा करके हमको भी प्रदान करें । तब श्रीठाकुरजीने कहा- पिताके रूपमें तो मुझे आप पितृसुख दे देंगे , पर बिना माताके मेरी बाललीलाका पूर्ण विकास कैसे होगा ? अतः पहले आप मेरे रिक्त मातृपदकी पूर्ति करें , फिर आपको परम प्रभावशाली सात पुत्रोंकी प्राप्ति होगी । उन सभी पुत्रोंमें पाँच - पाँच वर्षतक मेरा आवेश रहेगा । इस प्रकार आपको दीर्घकालतक मेरा वात्सल्य सुख प्राप्त होता रहेगा । कालान्तरमें प्रभुकृपासे आपको सात पुत्रोंकी प्राप्ति हुई और आप दीर्घकालतक वात्सल्यरससिन्धुमें अवगाहन करते रहे । आपने अपने साठों पुत्रोंके लिये सात गद्दियोंकी स्थापना की , जिससे वैष्णव धर्म और भगवद्भक्तिका खूब प्रचार प्रसार हुआ । लीलासंवरणकालमें आपने अपने सभी पुत्रोंको श्रीठाकुरजीका एक - एक सेवा - विग्रह प्रदान किया था , जिनकी आज भी परम्परागत रूपसे सेवा - पूजा हो रही है । इसका विवरण इस प्रकार है


 ( १ ) श्रीगिरिधरजीको ठाकुर श्रीमथुरेशजी , जो इस समय यतिपुरामें विराजमान हैं ; ( २ ) श्रीगोविन्दरायजीको ठाकुर श्री श्रीनाथजी , जो वर्तमानमें श्रीनाथद्वारा ( राजस्थान ) में विराजते हैं ; ( ३ ) श्रीबालकृष्णजीको श्रौद्वारिकाधीश भगवान् , जो कांकरौलीमें विराज रहे हैं ; ( ४ ) श्रीगोकुलनाथजीको श्रीगोकुलनाथजी , जो श्रीगोकुलधाममें विराजमान हैं ; ( ५ ) श्रीरघुनाथजीको श्रीगोकुलचन्द्रमाजी , जो वर्तमान में श्रीकामवनमें विराज रहे हैं ; ( ६ ) श्रीयदुनाथजीको श्रीबालकृष्णभगवान् , जो इस समय सूरतमें विराज रहे हैं तथा ( ७ ) श्रीघनश्यामजीको ठाकुर श्रीमदनमोहनजी , जो इस समय श्रीकामवनमें विराज रहे हैं


 । इस प्रकार श्रीविठ्ठलनाथजीके पुत्रोंद्वारा वैष्णवधर्म और भगवद्भक्तिका विपुल प्रचार - प्रसार हुआ ।



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