दुर्गा जी के 32 नाम समस्त कामनाओं की शिद्धि के लिए

0

                       अथ दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला 

              


 एक समयकी बात है , ब्रह्मा आदि देवताओंने पुष्प आदि विविध उपचारोंसे महेश्वरी दुर्गाका पूजन किया । इससे प्रसन्न होकर दुर्गतिनाशिनी दुर्गाने कहा ' देवताओ ! मैं तुम्हारे पूजनसे संतुष्ट हूँ , तुम्हारी जो इच्छा हो , माँगो , मैं तुम्हें दुर्लभ - से - दुर्लभ वस्तु भी प्रदान करूंगी । ' दुर्गाका यह वचन सुनकर देवता बोले- ' देवि ! हमारे शत्रु महिषासुरको , जो तीनों लोकोंके लिये कंटक था , आपने मार डाला , इससे सम्पूर्ण जगत् स्वस्थ एवं निर्भय हो गया । आपकी ही कृपासे हमें पुन : अपने - अपने पदकी प्राप्ति हुई है । आप भक्तोंके लिये कल्पवृक्ष हैं , हम आपकी शरणमें आये हैं । अतः अब हमारे मनमें कुछ भी पानेकी अभिलाषा शेष नहीं है । हमें सब कुछ मिल गया ; तथापि आपकी आज्ञा इसलिये हम जगत्‌की रक्षाके लिये आपसे कुछ पूछना चाहते हैं । महेश्वरि ! कौन - सा ऐसा उपाय है , जिससे शीघ्र प्रसन्न होकर आप संकटमें पड़े हुए जीवकी रक्षा करती हैं । देवेश्वरि ! यह बात सर्वथा गोपनीय हो तो भी हमें अवश्य बतावें । ' देवताओंके इस प्रकार प्रार्थना करनेपर दयामयी दुर्गादेवीने कहा ' देवगण ! सुनो– यह रहस्य अत्यन्त गोपनीय और दुर्लभ है । मेरे बत्तीस नामोंकी माला सब प्रकारकी आपत्तिका विनाश करनेवाली है । तीनों लोकोंमें इसके समान दूसरी कोई स्तुति नहीं है । यह रहस्यरूप है । इसे बतलाती हूँ । सुनो  

 दुर्गा दुर्गापद्विनिवारिणी । दुर्गनाशिनी ॥ दुर्गमच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गतोद्धारिणी दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा । दुर्गमज्ञानदा दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमज्ञानसंस्थाना दुर्गमोहा दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमाङ्गी दुर्गदैत्यलोकदवानला ॥ दुर्गमात्मस्वरूपिणी । दुर्गमाश्रिता ॥ दुर्गमध्यानभासिनी । दुर्गमार्थस्वरूपिणी ॥ दुर्गमायुधधारिणी । दुर्गमेश्वरी ॥ दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गभा दुर्गदारिणी । नामावलिमिमां यस्तु दुर्गाया मम मानवः ॥ पठेत् सर्वभयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः ॥

  १ दुर्गा , २ दुर्गार्तिशमनी , ३ दुर्गापद्विनिवारिणी , ४ दुर्गमच्छेदिनी , ५ दुर्गसाधिनी , ६ दुर्गनाशिनी , ७ दुर्गतोद्धारिणी , ८ दुर्गनिहन्त्री , ९ दुर्गमापहा , १० दुर्गमज्ञानदा , ११ दुर्गदैत्यलोकदवानला , १२ दुर्गमा , १३ दुर्गमालोका , १४ दुर्गमात्मस्वरूपिणी , १५ दुर्गमार्गप्रदा , १६ दुर्गमविद्या , १७ दुर्गमाश्रिता , १८ दुर्गमज्ञानसंस्थाना , १ ९ दुर्गमध्यानभासिनी , २० दुर्गमोहा , २१ दुर्गमगा , २२ दुर्गमार्थस्वरूपिणी , २३ दुर्गमासुरसंहन्त्री , २४ दुर्गमायुधधारिणी , २५ दुर्गमाङ्गी , २६ दुर्गमता , २७ दुर्गम्या , २८ दुर्गमेश्वरी , २ ९ दुर्गभीमा , ३० दुर्गभामा , ३१ दुर्गभा , ३२ दुर्गदारिणी । 

जो मनुष्य मुझ दुर्गाकी इस नाममालाका पाठ करता है , वह निःसन्देह सब प्रकारके भयसे मुक्त हो जायगा । '

 " कोई शत्रुओंसे पीड़ित हो अथवा दुर्भेद्य बन्धनमें पड़ा हो , इन बत्तीस नामोंके पाठमात्रसे संकटसे छुटकारा पा जाता है । 

इसमें तनिक भी संदेहके लिये स्थान नहीं है । यदि राजा क्रोधमें भरकर वधके लिये अथवा और किसी कठोर दण्डके लिये आज्ञा दे दे या युद्धमें शत्रुओंद्वारा मनुष्य घिर जाय अथवा वनमें व्याघ्र आदि हिंसक जन्तुओंके चंगुलमें फँस जाय , तो इन बत्तीस नामोंका एक सौ आठ बार पाठमात्र करनेसे वह सम्पूर्ण भयोंसे मुक्त हो जाता है । 

विपत्तिके समय इसके समान भयनाशक उपाय दूसरा नहीं है । देवगण ! इस नाममालाका पाठ करनेवाले मनुष्योंकी कभी कोई हानि नहीं होती ।

 अभक्त , नास्तिक और शठ मनुष्यको इसका उपदेश नहीं देना चाहिये । जो भारी विपत्तिमें पड़नेपर भी इस नामावलीका हजार , दस हजार अथवा लाख बार पाठ स्वयं करता या ब्राह्मणोंसे कराता है , वह सब प्रकारकी आपत्तियोंसे मुक्त हो जाता है । 

सिद्ध अग्निमें मधुमिश्रित सफेद तिलोंसे इन नामोंद्वारा लाख बार हवन करे तो मनुष्य सब विपत्तियोंसे छूट जाता है । इस नाममालाका पुरश्चरण तीस हजारका है । पुरश्चरणपूर्वक पाठ करनेसे मनुष्य इसके द्वारा सम्पूर्ण कार्य सिद्ध कर सकता है

 । मेरी सुन्दर मिट्टीकी अष्टभुजा मूर्ति बनावे , आठों भुजाओंमें क्रमशः गदा , खड्ग , त्रिशूल , बाण , धनुष , कमल , खेट ( ढाल ) और मुद्गर धारण करावे । मूर्तिके मस्तकमें चन्द्रमाका चिह्न हो , उसके तीन नेत्र हों , उसे लाल वस्त्र पहनाया गया हो , वह सिंहके कंधेपर सवार हो और शूलसे महिषासुरका वध कर रही हो , इस प्रकारकी प्रतिमा बनाकर नाना प्रकारकी सामग्रियोंसे भक्तिपूर्वक मेरा पूजन करे । 

मेरे उक्त नामोंसे लाल कनेरके फूल चढ़ाते हुए सौ बार पूजा करे और मन्त्र - जप करते हुए पूएसे हवन करे । भाँति भाँतिके उत्तम पदार्थ भोग लगावे ।

 इस प्रकार करनेसे मनुष्य असाध्य कार्यको भी सिद्ध कर लेता है । जो मानव प्रतिदिन मेरा भजन करता है , वह कभी विपत्तिमें नहीं पड़ता । 

' देवताओंसे ऐसा कहकर जगदम्बा वहीं अन्तर्धान हो गयीं । दुर्गाजीके इस उपाख्यानको जो सुनते हैं , उनपर कोई विपत्ति नहीं आती । 

                    भगवतीस्तुतिः 

प्रातः स्मरामि शरदिन्दुकरोज्ज्वलाभां सद्रत्नवन्मकरकुण्डलहारभूषाम् दिव्यायुधोर्जितसुनीलसहस्त्रहस्तां रक्तोत्पलाभचरणां भवतीं परेशाम् ॥ 

प्रातर्नमामि महिषासुरचण्डमुण्ड शुम्भासुरप्रमुखदैत्यविनाशदक्षाम् । ब्रह्मेन्द्ररुद्रमुनिमोहनशीललीलां चण्डीं समस्तसुरमूर्तिमनेकरूपाम् ॥ 

प्रातर्भजामि भजतामभिलाषदात्रीं धात्रीं समस्तजगतां दुरितापहन्त्रीम् । संसारबन्धनविमोचनहेतुभूतां मायां परां समधिगम्य परस्य विष्णोः ॥ 

हरिशरणम हरिशरणम हरिशरणम 

भूपाल मिश्र 

सनातन वैदिक धर्म 

Bhupalmishra35620@gmail.com 


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Please Select Embedded Mode To show the Comment System.*

pub-8514171401735406
To Top